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एक और धीमर मिला उसने भी मछली मारने का व मद्य मांस भक्षण का त्याग IT किया। । गोरखपुर में सेठ अभिनंदन प्रसाद जी ने एक जिन मंदिर निर्माण कराके ।
उन दिनों बिम्ब प्रतिष्ठा करवाई थी, जिसमें पं. बुधचंद जी शास्त्री राजकुमार जी शास्त्री, पं. किस्तूरचंद जी महोपदेशक, पं. सुन्दर लाल जी आदि विद्वान बाहर से पधारे थे। महाराज श्री एवं विद्वानों के भाषण से धर्म की बहत भारी प्रभावना हई। यहीं पर प्रतिष्ठा में गज रथ निकाला गया था, महोत्सव में
18 हाथी आगे थे। दीक्षा कल्याणक के दिन कुछ दीक्षाएं भी हुई। सार यह 51 है कि यह प्रतिष्ठा महोत्सव बड़े भारी पैमाने पर हुआ था। यहाँ से दोनों ही
मनिराज और ऐलक तथा क्षुल्लक बह्मचारी आदि महाराज जी के साथ विहार में थे।
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TE एक गलत अफवाह - गाजीपुर और गोरखपुर के मध्य में किसी ने एक गलत अफवाह उड़ा
दी कि शांतिसागर मुनिराज को किसी दुष्ट ने मार डाला, यह अफवाह
दूरदराज तक शीघ्र फैल गई, कई जगहों से तार आये, कई स्थानों पर बाजार F- बंद रहे, कितने ही व्यक्तियों ने उपवास किये, बहुत से जैन भाई गोरखपुर
पहुँचे, बहुत से मनुष्य महाराज के पास आये और महाराज को सकुशल देखकर बड़े प्रसन्न हुए। बड़ी कठिनाई से इस अफवाह का निराकरण हो सका।
उपसर्ग रुका
गाजीपुर और गया जी के बीच में एक मुसलमानों का गाँव पड़ा, वहां गाँव के एक मुसलमान के बगीचे में महाराज संघ सहित ठहर गये, केवल रात्रि को ही ठहरना था, उसी बगीचे में मुसलमानों की एक बरात आई थी, उनको दिगम्बर साधु का ठहरना अच्छा नहीं लगा, तब उन्होंने रात्रि को दिगम्बर साधुओं पर उपसर्ग कर उनके प्राण ले लेने का निश्चय किया। एक ब्रह्मचारी को इसकी भनक मिल गई, उसने महाराज को तत्काल यह स्थान छोड़ने की राय दी। किन्तु शांतिसागर महाराज ने कहा हम दिगम्बर जैन साधु रात्रि को विहार नहीं करते, चाहे प्राण भी क्यों न जायें। महाराज जी ने रात्रि को मौन खोलकर दूसरे साधु संतों से कहा हम सबको बड़े धैर्य से
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1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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