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LF से देश में प्रसिद्धि पाकर कल्याण कर गये। . TE बड़वानी में एक ब्रह्मचारी नंदकिशोरजी थे उन्होंने इन्दौर आदमी भेजकर , - मुनि बनने हेतु कमण्डलु पिच्छी मंगवायी। शांतिसागर महाराज ने तत्काल
कमण्डलु पिच्छिका भिजवाई और दो चार विद्वान भी भेजे। वहां विधि अनुसार उन ब्रह्मचारी जी की मुनि दीक्षा हुई और वे आनन्द सागर नाम से विख्यात
हुए। यहां पर कई श्रावकों ने शुद्ध भोजन के नियम लिये तथा एक चौके IF से दूसरे चौके में आहार की सामग्री नहीं लाने के नियम लिये, संभवतः यह
वर्ष सन 1924 का था। यहां से मुनिराज शांतिसागर जी और ऐलक सूर्यसागर जी दोनों साथ-साथ विहार कर इन्दौर (छावनी) तथा सोनकर होते हुए हाटपिपली आये यहां पर शांतिसागर जी महाराज ने ऐलक सूर्यसागर को मुनि दीक्षा और ब्रह्मचारी सुवालाल जी को क्षुल्लक दीक्षा दी। क्षुल्लक जी का नाम ज्ञानसागर रखा। यहां पर दीक्षा समारोह में समाज ने बहुत दान दिया, और धर्म प्रभावना भी बहुत हुई। ___ अब यहां से दो मुनि व एक क्षुल्लक इस प्रकार तीनों साधु संघ में विहार कर अनेक गांवों में विहार करते हुशंगाबाद आये, यहां मुसलमानों की LE अधिक बस्ती होने से पुलिस का विहार में विशेष प्रबंध हुआ। यहां से भेलसा होकर आप भोपाल आये। यहां पर बेगम साहिबा ने मुनि महाराज के विहार में निषेध को रद्द करवाकर महाराज का निष्कण्टक विहार कराया। यहां पर बड़वानी से आकर आनन्द सागर महाराज भी मिल गये।
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- गौ रक्षा
एक दिन एक गाय को कसाई मारने के लिये ले जा रहा था वह गाय बंधन तोड़कर भागती हुई महाराज के पास आई, महाराज से अपनी रक्षा की
याचना मूक भाव से करने लगी महाराज ने कसाई को रुपया दिलवाकर गाय 1 को बचा लिया। यहां से अनेक गांवों में विहार करते हुए संघ बजरंगगढ़
आया यह बजरंगगढ़ गुना के पास मध्यप्रदेश में एक अतिशय क्षेत्र है जहां : शांतिनाथ, कुंथुनाथ, आर अरहनाथ की विशाल खड़गासन प्रतिमाये हैं, यहां से विहार कर आपने थुवोनजी, और चंदेरी के तीर्थों की यात्रा वंदना की। चंदेरी में जैसी चौबीसी तीर्थकरों की प्रतिमाएं हैं ऐसी चौबीसी अन्यत्र कहीं : नहीं हैं।यहां चौबीस ही प्रतिमाएं शास्त्रोक्त, एवं शरीर वर्ण के रंग की आकर्षक विद्यमान हैं। यहां से विहार करते हुए महाराज मुंगावली पधारे। 227
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर मणी स्मृति-ग्रन्थ 51
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