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मुनि शांतिसागर जी नाम से प्रसिद्ध हो गये।
खड़गदा में क्षेत्र पाल जी का एक मंदिर गांव के बाहर है यहां पर आदिनाथ भगवान की प्रतिमा चूने में ढकी हुई है जिसे भील लोग सिंदूर पन्नी लगाकर पूजते थे। जैन समाज ने प्रतिमा को पटाने से बाहर निकलवा दी थी। प्रतिमा पूज्य है या नहीं? इसका निर्णय महाराज श्री के एक स्वप्न से हो गया और वहां बलि आदि का कार्य महाराज श्री की प्रेरणा से व राज्य की सहायता सब बंद हो कर वर्तमान में एक जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में यह स्थान बन गया है।
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अब आप दिगम्बर मुनि के रूप में बागड़ के अनेक गांवों में विहार कर धर्म की ध्वजा फहराने लगे। वहां से प्रतापगढ़, जायरा तथा आसपास के अनेक गांवों में आपने विहार कर समाज की कुरूतियो को बंद करवाया, और जैन धर्म की जगह-जगह प्रभावना की। इधर कहीं दिगम्बर साधुओं के कभी दर्शन नहीं होते थे अब एक दिगम्बर तपस्वी व तेज वाले, पूर्ण संयमी साधु के दर्शन कर लोग अपने को भाग्यशाली समझते थे। इस बीच आप के पांव में भारी चोट आ गई इसे आपने शांति से सहन किया, इधर से चखाचरोद होते हुए आप चंद्रावल आये यहां मुनि राज चन्द्रसागर जी का संयोग मिला अब दोनों साथ-साथ विहार करने लगे। अब आप अनेक गांवों में विहार कर इंदौर पधारे। सरसेठ हुकुमचंद जी के यहां आपका आहार हुआ। सरसेठ साहब के प्रयत्न से यहां दिगम्बर जैन साधुओं का विहार निषिद्ध था सो अंग्रेज सरकार से रद्द करवाया जिससे दिगम्बर साधु शहर में बेरोकटोक आने लगे ।
दोनों मुनि इंदौर छावनी में आये, यहां मंदिर की प्रतिष्ठा हो रही थी वहां आपके उपदेश हुये, फिर वहां से खण्डवा तथा अन्य गांवों में विहार कर आप बड़वानी सिद्धक्षेत्र पर आये ।
बडवानी में उपसर्ग
बडवानी में कुछ धर्म विरोधी लोगों को दिगम्बर मुनि का आगमन अच्छा नहीं लगा और उन्होंने एक दिन ध्यान अवस्था में विराजे श्री मुनिराज शांतिसागर जी महाराज पर मोटर चला दी, और उन्हें मार देने का असफल
प्रयास किया। महाराज ध्यानस्थ अवस्था में अचल रहे, मौन रखकर उपसर्ग सहन करने को उद्यत हो गये पर एक चमत्कार हुआ कि मोटर चलती चलती
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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