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+ एक दिन केवलदास के बहनोई बाँकानेर (गुजरात) के निवासी जिनका 卐 TE नाम गड़िया गुलाबचंद पानाचंद था उन्होंने केवलदास को भगवान नेमिनाथ ।
का विवाह सुनाया, इसे श्रवण करने से केवलदास के हृदय में कुछ वैराग्य की ज्योति जगने लगी और संसार भोगों से विरक्ति और उदासीनता के भाव अंकुरित होने लगे। आपके धार्मिक भाव उत्तरोत्तर बढ़ने लगे। छाणी में पंचोली रूपचन्द्रजी प्रतिदिन स्वाध्याय करते थे आप उनके द्वारा पढ़े जाने वाले शास्त्र
सुनने लगे इससे शास्त्र श्रवण व पठन की तरफ आपकी रुचि बढ़ने लगी 2 और संसार की असारता के भाव हृदय में हिलोरे मारने लगे।
आपके एक संबंधी बम्बई निवासी श्री लल्लूभाई लक्ष्मीचंद चौकसी एवं श्रीप्रेमचंद जी मोती चंद जी की धर्मपत्नी चम्पाबाई के लड़के श्री रतनचंद जी ने केवलदास को विषापहार स्तोत्र, आलोचना पाठ और रत्नकरण्ड श्रावकचार की एक एक प्रति पढ़ने के लिये दी। केवलदास को इन पुस्तकों के पढ़ने में रुचि उत्पन्न हुई और वे उन्हें ध्यान से पढ़ने लगे। कम पढ़ा वह केवलदास धर्म पुस्तकों के प्रथम बार पढ़ने से धर्म रुचि को बढ़ाने में तत्पर होने लगा, उसकी धर्म की जिज्ञासा बढ़ने लगी तथा कुछ भावों में धार्मिक जागृति उत्पन्न हुई।
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परिवार
केवलदास के एक बड़े भाई थे जिनका नाम खूमजी भाई था। दो बहिने थी, माताजी का स्वर्गवास हुआ, पिताजी अभी विद्यमान थे। बस छोटा परिवार था। सामान्य रोजगार करने से घर का खर्च चलता था, किन्तु केवलदास की संसार में रुचि नहीं होने से गहकार्य और व्यापार आदि से उदासीन रहा करते थे। कारण यह था कि भाग्य में कुछ और लिखा था अतः वे कहीं विरक्ति के भावों में अपने को खोने लगे थे, पर मार्ग आगे का क्या है यह सूझ नहीं रहा था पुनर्राप संयम की तरफ कदम धीरे-धीरे बढ़ रहे थे। स्वप्न का फल पूछने पर बहनाई पानाचंद जी ने शुभ बताया था इससे भी वे गृह से उदासीन रहने लगे। कम ज्ञान होने पर भी शास्त्र स्वाध्याय में मन लगाते और धर्म ज्ञान बढ़ाने लगे।
एक दिन केवलदास स्वतः श्री केशरिया जी की यात्रा करने चले गये, वहां पर मंदिर के सब भगवानों की वंदना कर मूलनायक श्री ऋषभदेव की
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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