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अहमदाबाद से आप ईडर, गौरल में चिन्तामणि पार्श्वनाथ के दर्शन कर अपने बहनोई श्री पानाचंद जी के पास बांकानेर औये।
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अपने गांव में ब्रह्मचारी जी का स्वागत
बांकानेर में मंदिर जी में चार दिन ठहरकर वहां से श्रीपानाचंद जी बहनोई के साथ अपने गांव छाणी पधारे, आप तो गांव के बाहर श्री महावीर स्वामी के मंदिर में ठहरे और पानाचंद जी ने छांणी गांव में जाकर सबको सूचना
दी कि केवलदास शिखरजी की वंदना कर सप्तम प्रतिमा के व्रत लेकर ब्रह्मचारी बनकर आपके गांव में आये हैं। गांव के जैनियों ने एक जिज्ञासा जागी अपने गांव के व्यक्ति को व्रती के रूप में दर्शन करने गांव के लोग उमड़ पड़े और गाजे बाजे के साथ जय जयकार करते हुए आकर ब्रह्मचारी जी से गांव में पधारने की प्रार्थना की और बड़े आदर और सम्मान के साथ
आपको गांव में ले गये। यहां पर गांव के लोगों ने केवलदास को ब्रह्मचारी के रूप में देखकर बहुत प्रसन्नता प्रगट की । सब बड़े हर्षित हुए। पंचोली रूप चंद जी के यहां आहार हुआ। रूपचंद जी ने यहां आपको शास्त्र स्वाध्याय कराया, आठ दस दिन आपसे ब्रह्मचारीजी ने कुछ पढ़ाई की और शास्त्र का ज्ञान बढ़ाया।
पिताजी को धार्मिक प्ररेणा
केवलदास जी के पिताजी श्री भागचंद जी धर्म के प्रति उदासीन व्यक्ति थे, इनकी क्रियाएं भी ठीक नहीं थीं, आपने पिताजी को प्रेरणा कर गिरनार
जी की यात्रा के लिये किसी तरह तैयार किया और अपने साथ पिताजी को लेकर यात्रा के लिये गिरनारजी की तरफ आप प्रस्थान कर गये। पुण्यवान आत्मायें अपना भी उपकार करती हैं और दूसरों का भी उपकार करने में नहीं चूकती हैं। पिताजी मिथ्यात्वी और पुत्र सम्यग्दृष्टि और व्रती यह कैसा संयोग था । किन्तु पुत्र एक ऐसा हीरा था जिसका मूल्य उस समय घर में कोई नहीं कर सका था ।
गिरनार जी की वंदना कर आपने पिताजी को सत्त व्यसन और रात्रि भोजन का त्याग कराया, तथा प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने की प्रतिज्ञा दिलवाई। गिरनार जी से शत्रुंजय जिसे पालीताना कहते हैं वहां के
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 5
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