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45454545454545454545454545454545 1 चलने के लिए रवाना हो गये। यहां से 6 मील दूर चिंतामणि पार्श्वनाथ का TE मंदिर है आप वहां पहुंचे और दर्शन कर आनंद को प्राप्त हुए। उस दिन
केवलदास के नंदीश्वर द्वीप का व्रत का उपवास था। यहां अपने बहनाई पानाचंदजी से स्वप्न का फल पूछा व उन्होंने उत्तम बताया। वहां से चलकर अपने अन्य संबंधियों से मिलने गये, सबसे क्षमा मांगी और कहा कि अब मेरा इधर इस रूप में आना इसके बाद नहीं होगा। इससे ज्ञात होता है कि उनके मन में उस समय भी साधु बनने के अंतरंग में भाव बन रहे थे। परिवार के
लोगों ने केवलदास को एक एक रुपया और नारियल भेंट देकर यात्रा के - लिये विदाई दी। वहां से केवलदास पुनः छाणी गये और पिताजी से पुनः
आज्ञा मांगी तब पिताजी ने मजबूरी से आज्ञा दी। उस समय केवलदास ने भाई बंधु बहिन परिवार व पिताजी से सबसे क्षमा याचना की और शिखर जी यात्रा के लिये प्रस्थान करने की पूर्णतः तैयारी कर ली। उस समय केवलदास के पास रुपये 5/- तो पिताजी ने दिये और कुटुम्ब सगे सम्बन्धियों के मिलाकर 22/- रुपये थे इन बाईस रुपयों पर केवल आप सम्मेदशिखर की यात्रा के लिये चल दिये।
शिखरजी की यात्रा को प्रयाण
सर्वप्रथम श्री केशरियाजी की यात्रा, दर्शन किये वहां से उदयपुर गये उदयपुर से रेल द्वारा, अजमेर, जयपुर, मथुरा, बनारस होते हुए ईसरी पहुंचे ईसरी से शिखरजी पहुंचे तक मधुवन की धर्मशाला में ठहरकर सब पर्वतों
की वंदना करने पहाड़ पर गये। वंदना करते समय केवलदास भक्ति से गदगद IE हो गये। भाव विभोर होकर पर्वत पर ही रह जाने के भाव करने लगे पर
पर्वत पर ठहरे नहीं वंदना कर मधुवन आ गये। इसी प्रकार दूसरी वंदना
भी भाव से कर ली तीसरी वंदना में वंदना करते समय अपनी सरल प्रकृति F से भावुकता में आकर प्रत्येक पर्वत के टोंक पर भगवानों से हाथ जोड़ प्रार्थना ॥
करते जाते थे कि हे भगवन्तों ! मैं पार्श्वनाथ भगवान की टोंक पर ब्रह्मचर्य
दीक्षा लूंगा आप सब वहां पधारिये। जब सब टॉक की वंदना करते हुए + TE सुवर्णभद्र कूट (भगवान पार्श्वनाथ मोक्ष स्थान) पर पहुंचे तब दर्शन पूजन कर
- विनय से भगवान की स्तुति की और भगवानों से बात करने लगे। हे भगवानों! - 4 मैं ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा लेना चाहता हूं, आप मुझे ब्रह्मचर्य प्रतिमा के व्रत की -
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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