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प्रतिमा के सन्मुख ब्रह्मचर्य व्रत का सहसा नियम ले लिया अर्थात् जीवन भर के लिये विवाह नहीं करने का नियम लिया। घर आने पर पिताजी नाराज
हुए और विवाह करने की प्रेरणा करने लगे । केवलदास अपने व्रत पर तन,
मन और वचन से पूरे दृढ़ थे उन्होंने सर्वथा इंकार कर कहा मैंने ऋषभदेव भगवान के सम्मुख प्रतिज्ञा की है कि मैं जीवन भर विवाह नहीं करूंगा-बस पिताजी का आग्रह असफल रहा और उनके प्रयत्न विवाह कराने के सब धरे के धरे रह गये ।
व्रतों की ओर
एक दिन शास्त्र श्रवण करते समय आपने नंदीश्वर द्वीप के व्रत का वर्णन सुना तो आपने नंदीश्वर व्रत करना प्रारंभ कर दिया। यह व्रत 108 दिन का था, जिसमें एक दो उपवास और एक दो पारणा करने तथा बीच में दो दो उपवास भी करने थे, इस प्रकार 5-6 उपवास और 5-7 पारणा कर आपने अपने धार्मिक जीवन का शुभारंभ किया।
तीर्थ यात्रा के भाव
श्री सम्मेदशिखरजी की यात्रा के भाव केवलदास के उत्पन्न हुए, पिताजी से आज्ञा मांगी, पिताजी ने कहा मैं तीर्थ यात्रा के लिये कोई पैसा नहीं दूंगा आज्ञा दूंगा-हां तू विवाह करना स्वीकार कर ले तो विवाह का सब
खर्च करने को तैयार हूं । केवलदास की तो विवाह के नाम से अरुचि हो
और
गई थी वे तो भोगों को भुजंग के समान समझने लगे थे। अतः विवाह का सर्वथा इंकार करते हुए आपने अपनी प्रतिज्ञा को दुहराई, तब पिताजी निराश हुए किन्तु केवलदास ने तो यात्रा की मन में ठान ली थी। पिताजी ने खर्च के लिये केवल रुपये 5/- दिये यही पांच रुपये लेकर यात्रा करने घर से निकल पड़े और सर्वप्रथम सब संबंधियों से आप मिलने गये ।
पुनः स्वप्न दर्शन
मार्ग में जाते हुए कणिआदरा गांव में ठहरे। रात्रि को स्वप्न आया,
आदमी केवलदास से स्वप्न में कहते हैं कि उठो, संसार में क्यों डूबते हो ।
इतना कहकर वे गायब हो गये। आंख खुली उठे और सामयिक कर आगे
5 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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