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15954545454545454545454545454545 45 तीर्थ की यात्रा कर आप ईडर होते हुए चोटीवाड़ पहुंचे, वहां से पिताजी को !
घर के लिये रवाना कर आप गुजरात में ही विहार करने ठहर गये।
चोरीवाड़ से आप मोरले आये, यहां ऐलक पन्नालाल जी मिल गये, ऐलक जी के साथ बारामती और सोलापुर चले गये, कुछ विद्या का लाभ नहीं होने से पुनः गोरेल आकर चातुर्मास किया। यहां भाद्रपद में 17 उपवास किये बीच में सिर्फ तीन बार पानी दिया। अष्टाह्निक पर्व आने पर आठों उपवास किये। आपको व्रत उपवास करने का बहुत अच्छा अभ्यास हो गया था।
कार्तिक शुक्ला 11 को सामयिक करने के पश्चात् आप एक तख्त पर लेट रहे थे कि एक बड़ा सांप और उसके पीछे एक कुत्ता दौड़ा हुआ आया तो महाराज की सहसा आंख खुली, आपने कुत्ते को हाथ के संकेत से भगाया
और सांप तख्त के नीचे लोटने लगा कुछ देर बाद सांप भी वहां से चला 51 गया। इस प्रकार सांप और कुत्ते दोनों के प्राण बच गये। गोमटेश्वर की यात्रा
गोरेला के जैनी भाई आपको साथ लेकर गोमटेश्वर (श्रवणबेलगोला) जहां बाहबली भगवान की 57 फुट ऊंची विशाल अद्वितीय सुरम्य प्रतिमा है वहां TE गये। वहां की वंदना कर कई स्थानों में विहार करते हुए पुनः ईडर पधारे
और वहां पर द्वितीय चातुर्मास किया। यहां पर श्री पं. नंदनलालजी के पास कुछ विद्या पढी। यहां पर आपने इस चातुर्मास में 32 दिन के उपवास किये।
एक और स्वप्न __एक रात्रि को यहां पर आपने दो स्वप्न देखे । वह चतुर्दशी की रात थी
पहले स्वप्न में बहुत से स्त्री-पुरुष देवों के समान दिखायी दिये, बाजार में ना जाते हुए उन सभी पुरुषों ने आपको देखा और उन पर पुष्पों की वृष्टि की 4 और जयजयकार शब्द का उच्चारण किया। "पुनः तीर्थ यात्रा - ईडर के भाईयों ने आपकी तीर्थ यात्रा का पूरा प्रबन्ध किया फलतः आप
गुजरात के तीर्थ आबू, तारंगा, गिरनार आदि की वंदना करते हए बंबई होकर दक्षिण भारत के तीर्थों के यात्रार्थ गये। दक्षिण में पूना सीमगा, तिरथली होते हुए मूड़बद्री जहां रत्नों की प्रतिमाये व धवला ग्रंथ विद्यमान है। आ पहुंचे।
वहां आठ दिन रहे, वृहद अभिषेक वहां हुआ, बड़ा आनन्द रहा। मूडबद्री से 21 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
2017
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