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ऊंची प्रतिमायें अति ही मनोज्ञ दर्शनीय हैं। महाराज श्री रूढ़वाई तथा व्यावरा TE होते हुए सारंगपुर आये । यहाँ श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा चौथे काल की TE
अति ही मनोज्ञ है। यहाँ पर आपने धर्मोपदेश देकर रात्रि भोजन और अभक्ष्य वस्तुओं को त्याग कराकर शास्त्र स्वाध्याय का नियम दिलाया। यहाँ के एक ब्राह्मण वकील ने पूर्णतया जैन धर्म धारण किया तथा रात्रि में भोजन नहीं करने का नियम लिया। नित्य दिन में दर्शन पूजन तथा शास्त्र स्वाध्याय करके भोजन करने का भी नियम लिया। यहाँ से विहार कर महाराज श्री मक्सी पार्श्वनाथ आये। यहाँ की यात्रा करके आप उज्जैन की तरफ पधारे। यहाँ उज्जैन आकर आप सेठ घासीलाल कल्याणमल जी की धर्मशाला में ठहरे। यहाँ दो दिन रहकर श्रावक-श्राविकाओं को धर्मोपदेश कर सप्तव्यसन तथा अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग कराया। यहां से विहार कर आप बड़नगर आये। यहाँ पर दो दिन रहकर धर्मोपदेश किया। यहाँ का औषधालय और अनाथालय अच्छी तरह चल रहा था। यहाँ से विहार कर आप रतलाम आये। दो दिन ठहरकर चातुर्मास करने के लिए बागड़ की तरफ विहार करते हुए आप खांदू आये। यहॉ दो-चार दिन रहकर धर्मोपदेश कर आपने बांसवाड़े की तरफ विहार किया। बांसवाड़े में आपका केशलोंच हुआ। यहाँ सेठ विजयचंद जी का स्थापित किया हुआ विद्यालय अच्छी तरह चल रहा था। यहॉ से आप तखवाड़े होते हुए परतापुर आये और परतापुर से सागवाड़े गये। यहाँ सागवाड़े में महाराज श्री ने उपदेश देकर श्राविका आश्रम खुलवाया था जो अब अच्छी तरह चल रहा है। यहाँ से आप चातुर्मास करने के लिए बड़ी अथोया उलका होते हुए परतापुर आये। यहाँ पर महाराज श्री का केशलोंच हुआ। केशलोंच के पश्चात् महाराज श्री के उपदेश से जैनी भाइयों ने अपने घरों में तथा जीमन में विलायती शक्कर के प्रचार को बंद कर खाने का त्याग किया और कितने ही भाईयों और बहिनों ने अपनी शक्ति के प्रमाण व्रत नियम लिए। यहाँ चातुर्मास में आपने शांति विलास संग्रह नाम की पुस्तक का संकलन किया जिसमें एक हजार सवैया और एक ही हजार दोहा अति ही उपयोगी शिक्षाप्रद हैं। यहाँ से आप भिलोदा होते हुए श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी आकर दर्शन किए। फिर मुरेटी होते हुए गोरेल आये। यहाँ पर रायदेश के जैनी भाई भी महाराजश्री की वंदना करने के लिये आये थे। उन्होंने भी श्री महाराज के उपदेश से नियम और प्रतिज्ञायें ली। यहाँ से आप विहार कर ईडर आये।
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1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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