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+ तो फिर दिगम्बर होकर अम्बर कैसे धारण किये जा सकते हैं। महाराज की
इस घोषणा के पश्चात् सब पंचों ने आपको मंदिर में पधारने के लिये निवेदन किया। आपने आदिनाथ स्वामी की चौथे काल की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन
करके गाजा बाजे के साथ नगर में होकर मंदिरजी में आये। - उस रात्रि को आपको 5 स्वप्न हुए। पहले स्वप्न में पहाड़ के ऊपर भगवान : -के चैत्यालय देखे। दूसरे स्वप्न में फूले हुए कमलों से भरा सरोवर देखा। 4: तीसरे स्वप्न में एक श्वेत वृषभ देखा, चौथे स्वप्न में एक बड़ा नाहर देखा।
- पांचवे स्वप्न में अपने मस्तक पर सूखे हुए बेर के कांटों का बोझ देखा जिसमें - किसी ने आग लगा दी जिससे सब जल कर भस्म हो गये। इन स्वप्नों ने
मानों यह घोषित कर दिया कि आपके द्वारा आगे जैन शासन का प्रभाव देश
व्यापी होगा। इसके पश्चात् दीपावली के पश्चात् सागवाड़ा में एक श्राविकाश्रम 31 खोला गया जिसका नाम मुनि शान्तिसागर श्राविकाश्रम रखा गया। चातुर्मास LE समाप्ति के पश्चात् आप मुनि शान्तिसागर जी के नाम से प्रसिद्ध होते गये।
वहीं पर बस्ती के बाहर नदी के किनारे क्षेत्रपाल का मंदिर है, वहां पर आदिनाथ
की प्राचीन प्रतिमा चूने में ढकी हुई थी, उसको जैनों ने पहिले ही बाहर निकाल LE लिया था। उस पर भीलों ने सिन्दूर लगा दिया था। मुनिश्री शान्तिसागरजी - ने कहा कि मूर्ति अखंडित है। यदि आज रात्रि को स्वप्न होगा तो कल प्रक्षाल
पूजन होगी। तब सब श्रावकों को उपदेश देकर प्रक्षाल पूजन करा दिया। FI LF जो भील जीव हिंसा करते थे उनको डूंगरपुर सरकार से बंद करा दिया कि LE
भविष्य में कोई भी जीव हिंसा नहीं करने पावे | इससे मुनिश्री की चारों ओर प्रशंसा होने लगी। __ मुनिश्री का विहार सितरी ग्राम की ओर हो गया। आपके साथ बम्बई सभा के उपदेशक कुंवर दिग्विजय सिंह जी भी थे। यहाँ कुंवर सा. ने ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण की, फिर मुनिश्री का विहार गलिया की ओर हुआ, वहाँ पाँच दिन ठहर कर धर्मोपदेश देकर श्रावकों को व्रत प्रतिज्ञा दिलायी। वहाँ से अजण और फिर वहाँ से गढ़ी गये। उस समय समाज में कन्या विक्रय खूब चलता था। इससे समाज तो कलंकित होता ही था, अहिंसा धर्म को भी कलंकित कर रखा था। दो दिन गढ़ी में ठहरकर वहाँ के निवासियों को धर्मोपदेश देकर व्रत प्रतिज्ञा करायी। गढी से धारोज और वहाँ से खवोरा होते हुए प्रतापगढ़ आये। यहाँ पांच दिन तक ठहर कर आपने धर्मोपदेश से
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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