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से भीलों ने सदा के लिए मांस, मदिरा और चोरी करना छोड़ दिया। ठाकर सा. ने भी नित्य दर्शन करने का नियम ले लिया, तथा मंदिर जी के लिये
6 बीघा जमीन दे दी अथवा रुपया वार्षिक देने की घोषणा कर दी इसके L= पश्चात् महाराज श्री अन्य गाँवों में विहार करते हुए अहिंसा धर्म का प्रचार
करते रहे। ___ इसके पश्चात् आपने गुजरात में प्रवेश किया और टांका ढूंका के पास वाले मंदिर में दर्शन किये। वहाँ से विहार करते हुए ईडर पहँचे। यहाँ से आप तारंगा की यात्रा पर गये। पं. नन्दलाल जी आपके साथ थे। तारंगा की यात्रा करने के पश्चात् वहीं पर आप चार दिन रहे। आपका वहाँ केश लोंच हुआ। वहाँ पर आपका प्रवचन हुआ, उसके प्रभाव से जैनेत्तर बन्धओं
ने मांस. मदिरा एवं अभक्ष्य पदार्थों के सेवन का त्याग किया। बहत से जैन +7 बन्धुओं ने शास्त्र स्वाध्याय का नियम लिया। आपने छाणी ग्राम में सरस्वती
भण्डार खुलवा दिया। 14 ग्रामों के निवासियों को वहां से स्वाध्याय के लिये शास्त्र प्राप्त होने लगे। तथा जो ग्रंथ भेजना चाहे वे पचोरी रूपचन्द वीरचन्द छाणी के पते पर ग्रंथ भिजवा भी सकते हैं, इसका भी नियम बना दिया। छाणी ग्राम से गोडादर, देरीला, बडाली में विहार करके वहाँ के में मंदिरों के एवं अभीझरा पाश्चर्वनाथ स्वामी के दर्शन किये। वहाँ से ईडर एवं ईडर, से सागवाड़ा आकर वहाँ आपने चातुर्मास किया। वहॉ श्रावण शुक्ला पूर्णिमा संवत 1980 के शुभ दिन एक श्राविका आश्रम स्थापित करवाया जो उस समय की बहुत बड़ी मांग थी।
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- मुनि दीक्षा : - सागवाड़ा में चातुर्मास के मध्य भाद्रपद शुक्ला 14 संवत् 1980 को आपने
आदिनाथ स्वामी के मंदिर जाकर भगवान के समक्ष दिगम्बरी दीक्षा धारण कर पूर्ण निर्ग्रन्थ मुनि बन गये। वैराग्य की भावना तो आपकी पहले से ही प्रबल थी। वह आज पूर्ण हो गयी। वहाँ से आधा मील दूरी पर स्थित एक पहाड़ी पर गये और वहाँ 6 घण्टे रहकर आपने ध्यान किया। मुनि बनने के पश्चात् आपसे सभी जैनों ने मिलकर वस्त्र धारण करने के लिये निवेदन किया, कहा कि यह समय मुनि पद धारण का नहीं है किन्तु आप अचल एवं दृढ रहे और कहा-कि भाइयों बमन करके फिर ग्रहण नहीं किया जाता है
- प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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