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कल्याणमल जी ने आपको पढ़ाने के लिये नियुक्त कर दिया। व्याकरण एवं 4
सिद्धान्त का अच्छा अध्ययन चलने लगा। प्रत्येक रविवार को आम सभा होती -1 थी जिसमें समाज अच्छी संख्या में आपका प्रवचन श्रवण के लिये एकत्रित
होती थी। लश्करी मंदिर में मुनि श्री का आम सभा में संबोधन होता था। पं. श्री खूबचन्द जी मुनिश्री के पास प्रतिदिन आते थे। सिद्धान्त ग्रंथों पर आधारित अच्छी चर्चा होती थी। सारा वातावरण धर्ममय बन गया था। मुनि श्री ने इन्दौर का इन्द्रपुरी नाम रख दिया। वहीं पर आपका केशलोंच हुआ। आपने श्री हजारीलाल जी को ऐलक दीक्षा दी और उनका नाम सूर्य सागर जी रखा। दशलक्षण पर्व में मुरैना से पं. माणिकचंद एवं लश्कर से पं. लक्ष्मीचंद जी, शास्त्र प्रवचन के लिये आये थे। तत्वार्थ सूत्र पर अच्छा व्याख्यान होता रहा। शास्त्र चर्चा भी खूब होती रही। इसी अवसर पर बड़वानी से ब्र. नन्दकिशोर जी ने तार द्वारा सूचित किया कि वे मुनि दीक्षा लेंगे इसलिए : उनके लिये पीछी कमण्डल भेजा। इन्दौर से पिच्छी कमण्डल भेजे गये। कछ । पंडित भी भेजे गये। इन्दौर में मुनि श्री से 10-12 भाइयों ने शुद्ध भोजन करने का तथा दूसरे चौके से कोई भी वस्तु अपने चौके में नहीं लाने का नियम लिया। ___ चातुर्मास के पश्चात् मुनिश्री शान्तिसागर जी एवं ऐलक सूर्यसागर जी इन्दौर से इन्दौर छावनी में आये। वहां चार दिन रहे और हाटपीपल्या आ गये। यहां 5 दिन रहकर सबको धर्म लाभ दिया। वहां से फिर सोमणकस पधारे। वहाँ से फिर हाटपीपली आये । यहाँ जैनों में परस्पर में झगड़ा रहता था। मुनिश्री के प्रभाव से वह मिट गया एवं एकता स्थापित हो गयी। यहाँ पर ऐलक सूर्यसागर जी को मुनि दीक्षा एवं ब्रह्मचारी सूवालाल को क्षुल्लक दीक्षा दी गयी। दीक्षा के समय प्राचीन काल जैसा दृश्य नजर आने लगा।
वहाँ से संघ खाते गांव गया। संघ में मुनि सूर्य सागर जी एवं क्षुल्लक TE ज्ञानसागरजी भी गये थे। फिर आपका विहार हाल्दे हुआ। वहाँ केश लोंच
भी हुआ। यहाँ केशलोंच देखने के लिये अच्छी भीड़ जमा हो गयीं आपका प्रभावक प्रवचन हुआ। लोगों ने सप्त व्यसन एवं मांस मदिरा का त्याग कराया।
वहाँ से नीमरली गांव आये। वहाँ पांच दिन ठहर कर श्रावकों को दर्शन ITE - पूजन के नियम दिलायें। यहां के भाई बहिन प्रतिमा जी के दर्शन नहीं करते
थे। इसके पश्चात विहार करते हुए इटारसी आये। यहाँ भी जैनी भाई भगवान 卐199
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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