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मदिरा का त्याग कर दिया। जैन भाइयों ने भी व्रत नियम लिये।
इसके पश्चात् आप दरियावाद आ गये। यहां एक ब्राह्मण परिवार के घर में ही जैन मंदिर था उसमें चतुर्थकालीन प्रतिमाजी तथा कितने ही प्राचीन शास्त्र थे। एक ग्रंथ ताडपत्रीय था। मुनिश्री की प्रेरणा से सभी शास्त्रों को लोहे की अलमारी में रखने का निर्णय लिया गया। फिर आप अयोध्या आये। यहां दो दिन ठहर कर सब मंदिरों के दर्शन किये। उस समय यहां के सभी मंदिर जीर्ण हो गये थे। वहां से फैजाबाद और फिर गोरखपुर की ओर विहार हो गया। गोरखपुर के मध्य के गांवों में आपने धर्मोपदेश दिया और बहुत से लोगों ने मांस मदिरा का त्याग कर दिया। तथा छान कर पानी पीने का नियम लिया। मार्ग में जाते समय एक नदी में तीस धीमर मछली मार रहे थे। मुनिश्री जब वहां पहुंचे और मछलियों के तड़पने का दृश्य देखा तो उनका हृदय कांप उठा। मुनि श्री ने उसी समय धीमरों को उपदेश दिया तो उन्होंने पकड़ी हुई मछलियों को पानी में छोड़ दिया। तथा भविष्य में मछली नहीं पकड़ने का नियम लिया। मुनि श्री के उपदेश का उन पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपने जाल को भी नदी में फेंक दिया। तथा मछली नहीं मारने तथा मदिरा नहीं पीने का नियम लिया। गोरखपुर के 5 मील पहिले सेठ अभिनन्दन प्रसाद का गांव था। वहां के एक मुसलमान ने मुनिश्री के उपदेश से मांस खाना एवं जीव मारना छोड़ दिया। वहां से गोरखपुर आकर सेठ अभिनन्दन दास जी के बगीचे में ठहरे। वहां सेठ जी ने मंदिर बनवा कर पंच कल्याणक प्रतिष्ठा करवायी गयी जिसमें पं. बुधचन्द जी सागवाडा, राज कंवर शास्त्री बांसवाड़ा, पं. कस्तूरचंद जी उपदेशक भोपाल तथा प्रतिष्ठाचार्य पं. सुन्दरलाल जी जयपुर से आये थे। यहां मुनियों का, ब्रह्मचारियों का तथा पंडितों का प्रतिदिन उपदेश होता था। जिसको सुन कर लोगों ने मांस मदिरा का त्याग कर दिया। प्रतिष्ठा रथ में 18 रथ थे। गज रथ निकला था। पंच कल्याणक प्रतिष्ठा में एक क्षुल्लक को ऐलक दीक्षा देकर उनका नाम वीर सागर रखा । भगवानदास जी अग्रवाल ने मुनिश्री से ब्रह्मचारी की दीक्षा धारण की। यही ब्रह्मचारी इस चारित्र के लेखक हैं। ज्ञान कल्याणक के दिन मुनि श्री के उपदेश के प्रभाव से अभिनन्दन प्रसाद जी ने मंदिर जी के संरक्षण
के लिये 10,000 रुपयों का ध्रुव फण्ड बनाया। तथा सेठ एवं सेठ के पुत्रों +ने स्वाध्याय एवं पूजा प्रक्षाल का नियम लिया।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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