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जपान, बीड़ी, सिगरेट, सोडा वाटर आदि का त्याग कराया। यहां नगर के बाहर
एक बगीचे में आपका केश लोंच हुआ। इसके पश्चात् गड़ाकोटा होते हुए । दमोह आये। यहां शहर के बाहर बगीचे में ठहरे। धर्मोपदेश हआ। लोगों ने सत्त व्यसन,बीड़ी सिगरेट एवं रात्रि भोजन का त्याग दिया। वहाँ से कुण्डलपुर आये और क्षेत्र के दर्शन किये। यहां बादामी रंग की पदमासन वाली विशाल प्रतिमा है जिसके दर्शन मात्र से आत्म शांति की प्राप्ति होती है। उस समय यहां एक ब्रह्मचर्याश्रम था जिसमें दो ब्रह्मचारी रहते थे। मुनि श्री यहां चार दिन ठहरे।
मुनिश्री ने कहा कि 'ऐसी प्रतिमा हमारे देखने में नहीं आयी पहाड की तलहटी में भी बहुत से मंदिर हैं। यहां यात्रियों का आवागमन रहता है। वहां से वे नैनागिरि आये। तीन दिन तक ठहर कर क्षेत्र के दर्शन करते रहे। छोटी
सी पहाड़ी है। जिस पर दिगम्बर जैन मंदिर बने हुए हैं। कई मुनिराजों का 4 मोक्ष स्थान है। विद्यालय भी चलता है। मुनि श्री यहां तीन दिन तक ठहरे।
- खूब धर्मोपदेश हुआ। जैना जैन बन्धुओं ने खूब सुना। वहां से हीरापुर होते 51 हुए द्रोणागिरि पहुँचे। यह भी सिद्ध क्षेत्र है। बड़े-बड़े मंदिर हैं. गुफायें हैं।
मुनि श्री ने धर्मोपदेश देकर श्रावकों को व्रत नियम दिये। जैन बन्धुओं ने सप्त
व्यसन एवं रात्रि भोजन न करने का नियम लिया। वहां से मणिपुर ग 51 वहां से बरुआ सागर जाते समय एक छोटी सी पहाड़ी पर बनी हुई गुफा IF में दोनों मुनियों ने रात्रि बितायी। प्रातःकाल होते ही वे बरुआसागर आये।
शहर के बाहर एक बड़ा सा सरोवर है, उसी पर ठहर कर सबको धर्मोपदेश
देकर प्रसन्न किया। यहां से झांसी आये जहां ज्ञानसागर जी मुनिराज भी LE संघ में आकर मिल गये। तीनों मुनि रत्नत्रय के समान दिखाई देने लगे।
माणपुर गये तथा
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| सोनागिरि जी की ओर
झांसी से तीनों मुनियों के संघ सोनागिरि सिद्ध क्षेत्र पर आये। सोनागिरि सिद्धक्षेत्र होने के कारण यहां सात दिन ठहरे। बराबर उपदेश होते रहे। यहां
आनन्द सागर की मुनिराज का केशलोंच भी हुआ। दोनों मुनिराजों का E धर्मोपदेश हुआ। खूब प्रभावना हुई। मुनि शान्तिसागरजी एवं आनन्द सागरजी - ने लश्कर की ओर विहार किया। मुनि ज्ञानसागर जी मुंगावली चले गये। + यहां से मुनि आनन्दसागर जी इन्दौर की ओर विहार कर गये तथा मुनि
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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