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15457555447457447457454545454545454545 HE बीना से मुनि श्री खुरई गये। पांच दिन तक ठहर कर धर्मोपदेश दिया। 4
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यहां से मुनि श्री बालावेहट गये और चतुर्थ कालीन प्रतिमा के दर्शन किये।
वहाँ से मालथौन गये। यहां भी आप 5 दिन तक ठहरे तथा सबको धर्मोपदेश E दिया। जहाँ पर 12 श्रावकों को पाक्षिक श्रावक के व्रत देकर उन्हें यज्ञोपवीत - दिया। यहाँ के जैन बंधु बड़े धर्मात्मा हैं। यहाँ एक ब्रह्मचारी जी भी रहते थे। यहाँ से गुना आये। अजैनों से मांस मदिरा का त्याग कराया तथा जैनों को प्रतिज्ञायें दिलवायीं। वहाँ से गांवों में होते हुए सादूमल आये। यहां एक दिन ठहरे। पं. कस्तूरचंद जी उपदेशक भी आपके साथ में थे।
वहाँ से मंडावरा गये। यहां 60 घर जैनों के थे तथा 11 बड़े-बड़े मंदिर हैं। मुनि श्री वहां पांच दिन ठहरे। मुनि श्री के उपदेश से अजैनों ने मांस मदिरा, मिथ्यात्व एवं रात्रि भोजन का त्याग किया। वहाँ से सादमल होते हए मुनि श्री महरोनी आये। गाँव के बाहर स्थित क्षेत्रपाल मंदिर में ठहरे। यहीं पर मुनि आनन्द सागर जी एक सूर्यसागर जी का आगमन हो गया। तीनों साधुओं का प्रवचन हुआ जिसका जैनाजैन जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ा। यहां
से पपोरा क्षेत्र पर आये। यहां 75 जैन मंदिर हैं उनमें एक चौबीसी भी है। ना यहां एक जैन पाठशाला है। यहां से मुनि श्री ने टीकमगढ़ की ओर विहार 4 किया। टीकमगढ़ में मुनि श्री ने 5 दिन तक ठहर कर धर्मोपदेश दिया।
टीकमगढ़ के महाराजा भी मुनि श्री के दर्शनार्थ आये थे। महरोनी के पं.
बंशीधर जी एवं पं. कस्तूरचंद जी उपदेशक के भी भाषण हए, जिसका बड़ा TE प्रभाव पड़ा। यहां के महाराजा के बाग में ही मनि संघ टहरा था। वहाँ से IP
विहार करके बहुत से गांवों में विहार करते हुए बालावेहट आये जो अतिशय
क्षेत्र कहलाता है। स्थान दर्शनीय है। यहां मुनि श्री के पास हरी प्रसाद ने TE अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण की और मुनि श्री
के संघ में रहने लगे। अतिशय क्षेत्र पर बहुत सी प्रतिमाएं खण्डित थी। मुनिश्री ने खण्डित प्रतिमाओं के स्थान पर नयी अखण्डित प्रतिमाएं विराजमान करने की प्रेरणा दी।
इसके पश्चात् विहार करते हुए मुनि श्री ललितपुर आये। वहाँ चार दिन तक क्षेत्रपाल के मंदिर में ठहर कर धर्मोपदेश से सबको लाभान्वित किया। वहाँ से देवगढ़ आये और रात्रि में देवगढ़ में ठहर कर दूसरे दिन पहाड़ पर
जाकर मंदिरों के दर्शन किये। आप पहाड़ पर 7 बजे पहुंच गये। पर्वत के : TE कोट दरवाजे लगे हुए हैं। पर्वत की परिक्रमा 10 मील बतायी जाती थी। पर्वत ।
तले नदी बहती है। पास में गुफा भी है। पहाड़ के ऊपर जैन मंदिर एक प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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