________________
4559459559545454545454545455465459545 ' लगे और खरमरा, चीतरी, गलियाकोट जैसे गाँवों में एक नई लहर पैदा करने
में सफलता प्राप्त की। राजस्थान के एवं मध्यप्रदेश के गाँवों में विहार करते हुए आप धर्म नगरी इन्दौर पहुँचे।
प, इन्दौर चातुर्मास-सन् 1924/संवत् 1981
छाणी महाराज ने मुनि अवस्था का अपना पहला चातुर्मास इन्दौर में किया। किसी निर्ग्रन्थ मुनि का चातुर्मास होना इन्दौर के लिये भी वह प्रथम घटना थी। सेठों का नगर, औद्योगिक नगर, समाज की दृष्टि से भी मालवा के सबसे बड़े समाज से सुशोभित इन्दौर नगर ने आपके विहार का हार्दिक स्वागत किया। उन दिनों इन्दौर में सरसेठ हुकमचन्दजी का एक छत्र राज्य था। सरसेठ भी मुनिश्री के दर्शन करने आते, उनका प्रवचन सुनते और महाराज श्री की जीवन चर्या के विषय में दो शब्द भी कहते। महाराजश्री ने वहाँ के पण्डितों से भी धार्मिक शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया और ज्ञान के प्रति अपनी उत्कृष्ट भावना का परिचय दिया। इन्दौर का चातुर्मास सफल
होने का अर्थ सारा मालवा महाराजश्री का भक्त बन गया और उनके पीछे-पीछे 1 दौडने लगा। यहॉ आसोज शुक्ला 10 संवत् 1981 को श्री हजारीमल पोरवाल TE ने आपके पास ऐलक दीक्षा ली। उनका नाम सूर्यसागरजी रखा गया।
मुनि श्री शान्तिसागरजी का 31 अक्टूबर, 1923 को सागवाड़ा में प्रथम बार केशलोंच हुआ। जैन मित्र के 15 नवम्बर सन् 1923 के अंक में इस केशलोंच के विस्तृत समाचार पत्र प्रकाशित हए। जैन मित्र में लिखा है कि
31 अक्टूबर को महाराज श्री ने पाँच हजार जैन-अजैन जनता के समक्ष बड़ी 卐 दृढ़ता से केशलोंच किया। मुनि बनने के पश्चात् यह उनका प्रथम समाचार - था।
आचार्य श्री सागवाड़ा में 30 अक्टूबर से 14 नवम्बर 1923 तक रहे। इन 15 दिनों में उनकी 32 सभायें हुईं, जिनमें 11 शास्त्र सभायें, बीस सार्वजनिक व्याख्यान सभायें और दो शंका-समाधान की सभायें हुई। सार्वजनिक सभाओं के सभापति अजैन ब्राह्मण, पोस्ट-मास्टर एवं डाक्टर आदि बनाये गये।
मुनिश्री के धर्मोपदेश से सागवाड़ा में कन्या-विक्रय बन्द हो गया और बाल, वृद्ध विवाह में भी कुछ सुधार हुआ। उक्त समाचार से पता चलता है । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
163
es
Pाना
-
FIFIFIFIFIFIF
FIFIFIFI