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साहित्यिक क्षेत्र में भी आचार्य सर्यसागरजी की महान सेवायें हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने 33 ग्रन्थों की रचना की, जिनमें 'संयम प्रकाश के 10 भागों का प्रकाशन हुआ था। इसमें एक-एक भाग में मुनिधर्म एवं श्रावकधर्म के विषयों का विस्तृत वर्णन है। हिन्दी भाषा में उस प्रकार के बहुत कम संकलन मिलते हैं। आचार्यश्री के समय में संयम प्रकाश ग्रंथ की बहत । प्रसिद्धि थी, लेकिन उनके समाधिमरण के पश्चात् संयम प्रकाश का नाम वर्तमान और अतीत की टकराहट में अदृश्य हो गया। आचार्यश्री ने “स्वभाव-बोध-मार्तण्ड" की रचना भव्य जीवों के कल्याण की भावना से की
थी। इस प्रकार उनकी विशाल संख्या में रचनायें होने पर भी स्वाध्याय प्रेमियों 45 के लिये उपलब्ध नहीं होना अथवा उनका विलुप्त हो जाना एक आश्चर्यजनक
- घटना है। एक बात अवश्य है कि बहुत से ग्रन्थ तो निःशुल्क भेंट किये गये -1 थे, इसलिये जिनके भी पास गये वे वहाँ ही समाप्त हो गये। इसके अतिरिक्त 45 विगत 50 वर्षों में होने वाले आचार्यों, मुनियों एवं विद्वानों द्वारा निर्मित साहित्य
का अभी मूल्यांकन भी नहीं हो पाया है। आशा है आने वाली पीढ़ी इनके विशाल साहित्य का सही मूल्यांकन एवं अन्वेषण करेगी।
आचार्य विमलसागरजी भिण्डवाले 51 मुनिश्री विमलसागरजी महाराज ही बाद में आचार्य विमलसागरजी के
नाम से प्रसिद्ध हुए आपको भिण्डवाले महाराज भी कहते हैं। साहित्य प्रकाशन
में आपकी बहुत रुचि थी। वे स्वयं लिखते, पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों का संपादन 57 करते, विभिन्न उपयोगी पाठों का संग्रह करते और फिर उन्हें श्रावकों को
प्रेरित करके प्रकाशित करवाते थे। लेकिन अभी तक उनकी कृतियों का कोई
व्यवस्थित मूल्यांकन नहीं हो पाया है। का यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि ज्ञानपुंज उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी
महाराज ने आचार्य शान्तिसारगजी छाणी एवं उनकी शिष्य परम्परा का विस्तृत
इतिहास की खोज के लिये युवकों को तैयार किया है और थोड़े से समय 4 में ही अच्छी सामग्री एकत्रित कर ली है। मुनि विमलसागरजी महाराज की - अब तक श्रावक धर्म, श्राविका बोध, अध्यात्म-संग्रह, तत्त्वार्थ बोध एवं नियमसार - ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ एकत्रित करवा ली हैं। नियमसार उनका प्रकाशित
ग्रन्थ है। तत्त्वार्थ बोध एवं अध्यात्म-संग्रह सम्पादित कृतियाँ हैं। श्रावकधर्म
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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