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दिन रहे। वहाँ से बड़ौदा शहर आ गये। वहाँ केवल एक दिन ठहरने के पश्चात् सूरत गये वहाँ के मंदिरों के दर्शन किये और बम्बई आ गये और हीरा बाग में जाकर ठहर गये। यहाँ दिल्ली वाले सेठ हुकमचन्द के यहां आहार किया। वहाँ से पूना आ गये और वहाँ से सीमोगा तक रेल यात्रा कीं और फिर मोटर में बैठकर तिरथली चले आये। वहाँ से आगम ग्राम आ गये । फिर वहाँ से हमाड ग्राम आ गये और वहाँ के तालाब में स्थित मंदिर के दर्शन करके मोटर द्वारा मूडबिद्री आ गये ।
मूड बद्री तो तीर्थ स्थान है इसलिये वहाँ तीन दिन ठहर कर सभी मंदिरों के दर्शन किये। वहाँ के भट्टारकजी ने 32 नवरत्नों की प्रतिमाओं दर्शन
तीन
कराये तथा जयधवला, महाधवला ग्रंथों की ताडपत्रीय प्रति के प्रथम बार दर्शन किये। बड़ा आनन्द आया। जीवन सफल हो गया। वहाँ से कारकल आये । ब्रह्मचारी जी का वहाँ खूब मन लगा। आठ दिन तक ठहरे। यहाँ बाहुबली स्वामी की 27 फुट ऊँची प्रतिमा का दर्शन कलशाभिषेक था। बहुत से भाई एकत्रित हुए थे। आठ दिन तक बड़ा आनन्द आया । माघ शुक्ला पूर्णिमा को 1008 कलशों से बाहुबलि स्वामी की प्रतिमा के कलशाभिषेक देखे जीवन सफल हो गया। वहाँ से मूडबद्री होते हुये बेणूर गये। वहाँ पर नदी किनारे पर स्थित बाहुबली स्वामी की 17 फुट ऊँची प्रतिमा के दर्शन किये। मूडबद्री जाकर रत्नों की प्रतिमाओं के दर्शन किये। फिर मंगलौर, बंगलौर होते हुए मैसूर आ गये। वहाँ के मंदिरों के दर्शन करके श्रवणबेलगोला चले गये। वहाँ पर बाहुबली स्वामी की 52 फुट ऊँची मनोहारी प्रतिमा के दर्शन किये। यहाँ पांच दिन तक ठहरे। यहाँ पर कलकत्ता के सेठ लक्ष्मीनारायण जी मिल गये। उन्होंने ब्रह्मचारी जी को टिकट का खर्च देकर अपने साथ ले लिया। आरसीकेरी होते हुए हुबली आ गये। यहाँ फिर ऐलक पन्नालाल जी मिल गये। ऐलक जी के केशलोंच में अढ़ाई लाख व्यक्ति एकत्रित हुए। वहाँ के जप यात्रा के स्थान के लिये 27000 टेक्स के दिये । वहाँ से सोलापुर आ गये। दो दिन तक ठहरने के पश्चात् कुन्थलगिरि आ गये। वहाँ आठ दिन ठहर कर महाराज कुलभूषण देशभूषण की यात्रा की । फिर वहाँ से पूना से नासिक आये । यहाँ गजपन्था के दर्शन किये। फिर मोटर से मांगीतुंगी की यात्रा की। साथ में पं. झम्मनलाल जी कलकत्ता वाले थे । वहाँ से फिर गजपन्था आये ।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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