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सर्प और उसके पीछे कुत्ता दौड़ता हुआ आ रहा है। उन्होंने कुत्ते को हाथ TE के इशारे से भगा दिया। सर्प आकर उनके तखले के नीचे बैठ गया। कुछ TE
। देर के पश्चात् सर्प स्वयमेव वहाँ से चला गया। ब्रह्मचारी जी तख्ते पर बैठे । 45 रहे। इस घटना से गाँव वालों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और निर्भयता एवं सर्प - की प्राण रक्षा करने की प्रशंसा होने लगी। चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् आपके
नेतृत्व में गाँव वालों ने श्री गोम्मटेश्वर की यात्रा सम्पन्न की। यात्रा के पश्चात् आपने आसपास के गाँवों में विहार किया और समाज को आत्म लाभ देते
दूसरा चातुर्मास
ब्र. केवलदास ने ईडर में दूसरा चातुर्मास किया। वहाँ पं. नन्दनलाल जी थे जिनसे उन्होंने ग्रंथों का स्वाध्याय किया। पूरे चातुर्मास में 32 उपवास करके आत्म शुद्धि की। यहाँ पर उनको चतुर्दशी को फिर दो स्वप्न दिखायी 4 दिये। एक स्वप्न में बहुत से स्त्री पुरुष देवों के समान दिखायी दिये। उन्होंने ब्रह्मचारी जी को मुनि अवस्था में बाजार में जब जाते हुए देखा तो इन पर 1 पुष्प वृष्टि की और जयजयकार किया। दूसरे स्वप्न में उन्होंने देखा कि ईडर के भट्टारक जी भ्रष्ट हो जावेंगे और जैन बन्धुओं द्वारा उनके हाथ पकड़कर पीटते हुउ दिखायी दिया। प्रातः होते ही उन्होंने दोनों स्वप्नों को पंडित नन्दनलालजी एवं समाज को सुनाया। दूसरा स्वप्न एकदम सही निकला। ईडर के भट्टारकजी एक स्त्री को लेकर चले गये। चातुर्मास के पश्चात् वहां की समाज द्वारा यात्रा के लिये खर्च का प्रबन्ध कर दिया।
तीर्थ यात्रा
सर्वप्रथम आप आबू पहाड़ पर गये। वहाँ आपको ब्र. शीतलप्रसाद जी TE एवं देहली का संघ मिल गया। आबू के मंदिरों के दर्शन करके खड़ी घाट F- आ गये और संघ के साथ तारंगाजी चले गये। वहाँ की वन्दना करके आप
संघ के साथ गिरनार चले गये। पहाड़ की वन्दना करके सहस्त्र वन TE हुए जूनागढ़ की धर्मशाला में आ गये। दूसरे दिन शत्रुजय की वन्दना की।
जूनागढ़ निवासी भाई धर्मचन्द जी के डेरे में दो दिन आहार करने के पश्चात् 卐 अहमदाबाद होते हुए पावागढ़ आ गये और वहाँ की यात्रा की। पावागढ़ में
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 11111111FIFIFIFIFIFIFI दानापानानानानानानानानानानाना