________________
फफफफफफफफ
!!!!!
मुनिश्री की प्रथम कृति है, जिसे उन्होंने 28 अप्रैल, 1928 को लिखकर समाप्त की थी ।
आपका गृहस्थ नाम किशोरीलाल था। विक्रम संवत् 1998 (सन् 1941) में आपने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। तीन वर्ष पश्चात् आचार्य विजयसागरजी आपको मुनि पद से अलंकृत किया। सन् 1973 में आपको हाड़ौती दिगम्बर जैन समाज द्वारा आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित किया गया था ।
आचार्य विमलसागरजी द्वारा दीक्षित साधुओं में आचार्य निर्मलसागरजी, आचार्य सुमतिसागरजी, मुनिश्री कुन्थुसागरजी एवं क्षुल्लक धर्मसागरजी के नाम उल्लेखनीय हैं।
आचार्य निर्मलसागरजी
वर्तमान आचार्यों में निर्मलसागरजी महाराज का विशिष्ट स्थान माना जाता है। गिरनार सिद्धक्षेत्र की तलहटी में "निर्मल ध्यान केन्द्र" की स्थापना आपके सदुपदेशों में सुफल है। आप अच्छे वक्ता, लेखक एवं प्रभावक व्याख्याता हैं।
आपका जन्म मगसिर वदी 2 संवत् 2003 में लिजा एटा के पहाड़ीपुर ग्राम में हुआ। आपके पिताश्री बोहरेलाल जी, माता श्रीमती गोमावती ने आपको पाकर आनन्द का अनुभव किया और अपना पूरा स्नेह आप पर उड़ेल दिया। आपका बचपन का नाम रमेशचन्द था। वैराग्य भावना तो आपके हृदय में प्रारम्भ से ही घर कर गई थी। आचार्य विमलसागरजी से आपने दूसरी प्रतिमा धारण की। 19 वर्ष की अल्प आयु में संवत् 2022 में आपने मुनिश्री सीमंधरस्वामी से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। इसके दो वर्ष पश्चात् आचार्य विमलसागरजी महाराज भिण्ड वालों से निर्ग्रन्थ दीक्षा लेकर आत्मसाधना के मार्ग पर बढ़ते गये । आपके द्वारा दीक्षित साधुओं में मुनिश्री निर्वाणसागरजी, सन्मतिसागरजी अजमेर वाले, शान्तिसागरजी हस्तिनापुर वाले, वर्धमानसागरजी, दर्शनसागरजी, विवेकसागरजी आदि के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। आचार्यश्री कल्याणसागरजी महाराज, आचार्य दर्शनसागरजी महाराज भी आपके शिष्य हैं। वर्तमान में आप निर्मल ध्यान केन्द्र को ही अपनी साधना का प्रमुख केन्द्र बनाकर प्राणीमात्र के कल्याण में लगे हुए हैं।
181
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ