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लगा। जो भी एक बार आपके दर्शन कर लेता वही कृतकृत्य हो जाता। गाँवोंमें विहार करते हुए आप बड़वानी क्षेत्र पर पहुँचे और वहाँ धर्मोपदेश कर कितने ही प्राणियों का जीवन सुधार दिया। बड़वानी में जब आप सामायिक में लीन थे तो कुछ विरोधी अजैन लोगों ने महाराज पर मोटर चलाकर मारना चाहा किन्तु महाराज ध्यान मग्न रहे। तनिक भी विचलित नहीं हुए। मोटर महाराज के शरीर पर तो चली नहीं और स्वयमेव रुक कर खराब हो गई। इस चमत्कार से सब विरोधी झुक गये और महाराजश्री के चरणों में पड़कर क्षमा माँगने लगे। महाराज ने भी इनको क्षमा कर दिया। इस उपसर्ग विजय से आचार्यश्री की ख्याति चारों ओर फैल गई। सर सेठ हुकमचन्दजी ने विरोधियों पर मुकदमा चलाना चाहा पर महाराजश्री ने मना कर दिया।
महाराजश्री ने इन्दौर में चातुर्मास स्थापित किया। इससे पूर्व भी एक बार इन्दौर में आपका चातुर्मास हो चुका था। सारा इन्दौर महाराजश्री के दर्शनों के लिये एवं प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ता था। चारों ओर महाराजश्री के प्रभाव एवं त्याग-तपस्या की चर्चा होती रहती थी, सर सेठ हुकमचंदजी प्रायः महाराजश्री का प्रवचन विशेष रूप से आकर सुनते थे।
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ईडर चातुर्मास सन् 1931 / संवत् 1988 एवं तारंगा हिल का मेलाआचार्यश्री तारंगा हिल भी गये जहाँ चैत्र शुक्ला 11 से 15 तक बड़ा भारी मेला भरता है। यहाँ चैत्र शुक्ला 14 को शान्तिकुंज में आचार्यश्री का केशलोंच हुआ और धर्म की बड़ी प्रभावना हुई। उसी समय वहाँ 'शान्तिसागर आत्मोन्नति भवन' का उद्घाटन हुआ और भी दूसरे उत्सव आयोजित हुए । इसके पश्चात् पुनः ईडर में आपका चातुर्मास हुआ और उस बहाने आपने भव्य जीवों को धर्मोपदेश देकर उन्हें सन्मार्ग पर लगाया। ईडर बहुत प्राचीन शहर है, जहाँ उस समय जैन समाज के 100 घर एवं तीन जैन मंदिर थे। यहाँ का शास्त्र भण्डार पूरे देश में प्रसिद्ध है ।
ईडर से आचार्यश्री ने अपने जन्मस्थान छाणी की ओर विहार किया. तथा गोडाकर, बावलवाड़ा होते हुए खाणदरी पधारे। खाणदरी ऋषभदेव स्वामी का अतिशय क्षेत्र है जिनके दर्शनार्थ दूर-दूर से लोग आते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। यहाँ से भाणदा ठहरते हुए नवागाँव आये ।
यहाँ आचार्यश्री का केशलोंच हुआ, जिसमें आसपास के लोग पर्याप्त संख्या
में पधारे। भाणदा होते हुए आचार्यश्री ने पुनः अपने जन्म स्थान छाणी में प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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