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卐 प्रवेश किया। पूरे गाँव वालों ने आचार्यश्री का जोरदार स्वागत किया। यहाँ ,
का ठाकुर मानसिंह महाराज का परम भक्त था। उसने आचार्यश्री की प्रेरणा पाकर दशहरे पर होने वाली भैंसे की बलि बन्द करा दी। छाणी में कुछ दिनों तक ठहरने के पश्चात् और भी कितने गाँवों में विहार किया।
आचार्यश्री नागफणी पार्श्वनाथ भी गये। यह स्थान प्राकृतिक शोभा -1 से युक्त भगवान पार्श्वनाथ का अतिशय क्षेत्र है जिसमें भगवान पार्श्वनाथ
की तथा धरनेन्द्र पद्मावती की अतिशय युक्त प्रतिमाये जिन मंदिर में विराजमान हैं। यहाँ पहाड़ के भूगर्भ से प्रतिमा के नीचे पानी बहता है। तीन कुण्ड एवं गोमुखी बनाये गये हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि प्रतिमा के नीचे से बहने वाला पानी यात्रियों के बढ़ने से बढ़ जाता है और यात्रियों के कम होने पर कम हो जाता है। यहाँ कभी पानी का हास नहीं होता।
इसके पश्चात् आचार्यश्री ने बागड़ प्रदेश को छोड़कर राजस्थान के पश्चिमी भाग में विहार करने का मानस बनाया। इस भाग में अब तक किसी भी मुनि के चरण नहीं पड़े थे। आचार्यश्री चित्तौड़ होते हुए नसीराबाद पहुँच गये और उसी नगर में अपना चातर्मास स्थापित किया।
नसीराबाद चातुर्मास-सन् 1932/संवत् 1989
नसीराबाद उन दिनों अजमेर मेवाड राज्य का अंग था। नसीराबाद फौजी केन्द्र था, जिससे यह नसीराबाद छावनी कहलाता है। उस समय वहाँ दिगम्बर जैन समाज के 50 घर थे तथा तीन मंदिर थे। सारा समाज अजमेर जैन समाज से जड़ा हआ था. क्योंकि यह अजमेर के पास में ही हैं। नसीराबाद में आचार्य श्री का बहुत ही शानदार चातुर्मास हुआ। उन दिनों मुनियों का जयपुर, अजमेर आदि क्षेत्रों में विहार होने लगा था। दूसरे आचार्य चारित्र-चक्रवर्ती श्रीशान्तिसागरजी (दक्षिण) भी अपने संघ के साथ
इसी क्षेत्र में विहार कर रहे थे। - व्यावर चातुर्मास-सन् 1933/संवत् 1990 __नसीराबाद में चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् आचार्यश्री इधर-उधर विहार करते रहे। जिस गाँव में भी एक बार आपका आगमन हो जाता, वहाँ के
निवासी आपको जाने ही नहीं देते थे। इसलिये नसीराबाद से व्यावर पहँचने -1 में संघ को आठ महीने लग गये। व्यावर में चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य 170
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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