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51 नहीं खाने का नियम ले लिया। चातुर्मास समाप्त होने के पश्चात् आचार्यश्री LE ने अपने संघ के साथ गुजरात की ओर विहार किया। F- ईडर (गुजरात) चातुर्मास-सन् 1928/संवत् 1985 । जैसे ही आचार्यश्री ने ईडर की ओर विहार किया। वहाँ की समाज
ने बड़ी प्रसन्नता के साथ आपसे चातुर्मास के लिए निवेदन किया। वहाँ के समाज की भक्ति देखकर आपने चातुर्मास की स्वीकृति दे दी। आचार्यश्री का गुजरात में यह प्रथम चातुर्मास था। आचार्यश्री गुजराती एवं हिन्दी दोनों ही अच्छी तरह बोल लेते थे इसलिये आपको चातुर्मास में प्रवचन करने में कोई कठिनाई नहीं आयी। चातुर्मास के मध्य अनेक प्रकार के विधानों का आयोजन होता रहा, जिससे पूरा समाज धार्मिक कार्यों में लगा रहा। आपके प्रवचनों में सभी जातियों और धर्मों के अनुयायी आते थे और शान्तिपूर्वक उपदेश सुनकर अपने जीवन को सफल बनाते थे। चातुर्मास के मध्य यहाँ की समाज में आचार्य शान्तिसागर दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला के नाम से एक संस्था स्थापित की, जिसके माध्यम से जैन ग्रन्थों का प्रचार होने लगा।
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51 सागवाड़ा चातुर्मास-सन् 1929/संवत् 1986
गुजरात के कितने ही गाँवों को अपने उपदेशों से लाभान्वित करते हुए आपने राजस्थान की धरती पर पुनः अपने चरण रखे और चातुर्मास के पूर्व सागवाड़ा पहुँच गये। नगर में गंगा स्वयमेव आ गई यह जानकर सब प्रसन्नता से झूम उठे और आचार्यश्री से चातुर्मास के लिय निवेदन किया। आचार्यश्री ने भी सागवाड़ा जैन समाज की भावना को लेकर चातुर्मास करने की स्वीकृति प्रदान की। सागवाड़ा चातुर्मास में आपने सामाजिक सुधारों पर
विशेष बल दिया। कन्या विक्रय, मृत्युभोज, भक्ष्य-अभक्ष्य सेवन व मृत्यु पश्चात् TE होने वाले रोने-पीटने आदि बुराइयों को जड़-मूल से उखाड़ने का आपका - विशेष योग रहा।
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इन्दौर चातुर्मास-सन् 1930/संवत् 1987
सागवाड़ा से चातुर्मास समाप्ति करने के पश्चात् आपने मालवा की ओर विहार किया । त्याग और तपस्या से आपका शरीर सोने के समान चमकने
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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