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45454545454545454545454545454545 म गिरीह चातुर्मास और आचार्य पद-सन् 1926': संवत् 1983
गिरीडीह बिहार प्रान्त में एक औद्योगिक नगर है। अग्रक का यहाँ सबसे 4 बड़ा कारखाना है। यहाँ का जैन समाज राजस्थान से गया हुआ है। वर्तमान में यहाँ 85 घर एवं दो मंदिर हैं। यहाँ के निवासी धार्मिक स्वभाव के हैं। अब तो उनके संघ में मुनि, त्यागी, क्षुल्लक एवं ब्रह्मचारी आदि सभी थे। चातुर्मास के मध्य में गिरीडीह जैन समाज ने एक स्वर से आग्रह पूर्वक मुनि - शान्तिसागरजी (दक्षिण) एवं आचार्य शान्तिसागरजी (छाणी) के नाम से दोनों आचार्यों के साथ दक्षिण एवं छाणी उपनाम अलग पहचान हेतु लगा दिये। चातुर्मास के पश्चात् यहाँ आचार्यश्री ने ब्रह्मचारी सुवालालजी को मुनि दीक्षा - दी, जिनका नाम ज्ञानसागर रखा गया।
विहार
गिरीडीह में चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् आचार्यश्री ने अपने संघ के साथ, जिनमें मुनि ज्ञानसागरजी, मुनि वीरसागरजी, मुनि मुनीन्द्रसागरजी भी थे, पुनः सम्मेदशिखरजी की ओर विहार किया और मन्दारगिरी, भागलपुर, TE चम्पापुर, पावापुर, राजगृही आदि सिद्धक्षेत्रों को वन्दना की। राजगृही में विहार करके कुण्डलपुर क्षेत्र की वंदना की। यहाँ के जमींदार ने आचार्यश्री से अपनी शंकाओं का निराकरण करके आजीवन पशुओं की बलि न देने की प्रतिज्ञा की तथा पानी छानकर पीने का नियम लिया। उक्त समाचार को जैन मित्र ने 27 जून, सन् 1926 के अंक में विस्तार से प्रकाशित किया।
राजगही में गया जैन समाज के प्रतिनिधियों ने आचार्यश्री को गया में पधारने के लिय नारियल चढ़ाकर निवेदन किया। आचार्यश्री संघ के साथ गया पधारे। उसके पश्चात् यहाँ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आचार्यश्री के सानिध्य में बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुई। हजारों भाई-बहिनों ने प्रतिष्ठा में - भाग लिया। फल्गु नदी की रेती में पांडाल बनवाया गया। आचार्यश्री का कितनी ही बार प्रवचन हुआ। आचार्यश्री के कारण मेला उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ। कहते हैं कि मंदिर को नबे हजार की आय हई थी। गया से 14 दिन के बाद विहार करके महाराज अपने संघ के साथ रफीगंज आये और वहाँ आठ दिन ठहरे। वहाँ से अनेक गाँवों में विहार करते हुए तथा अपने प्रवचनों से सबको लाभान्वित करते हुए संघ वाराणसी पहुँचा। वहाँ पर भदैनी, भेलूपुरा, 51 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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