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15454545454545454545454545454545 ' कि मुनिश्री का व्यक्तित्व उभर रहा था और जैन पत्र-पत्रिकायें मुनिश्री के - समाचारों को अच्छा स्थान देते थे। उस समय समाज में जैन गजट, जैन मित्र. जैन बोधक, दिगम्बर जैन, जैन महिलादर्श, वीर एवं जैन जगत जैसे साप्ताहिक एवं मासिक पत्र निकलते थे। इन अधिकांश पत्रों में महाराजश्री के समाचार प्रमुखता से छपते थे।
ललितपुर चातुर्मास-सन् 1925/संवत् 1982 4 इन्दौर से विहार करते हुए छाणी महाराज हाटपीपल्या पहुँचे। वहाँ
मुनिश्री ने सूर्यसागरजी को मुनि दीक्षा प्रदान की। उस दिन मंगसिर वदी एकादसी, संवत् 1981 का शुभ दिन था। मुनि श्रीशान्तिसागरजी महाराज के द्वारा यह प्रथम मुनि दीक्षा थी। हाटपीपल्या मालवा प्रदेश का अच्छा कस्बा है। जैनों की भी वहाँ अच्छी बस्ती है।
इन्दौर में सफल चातुर्मास के कारण मुनि शान्तिसागरजी छाणी की प्रसिद्धि एवं कीर्ति चारों ओर फैल गई थी। इन्दौर से कितने ही गाँवों एवं नगरों को अपनी चरण रज से पावन करके तथा प्रवचनों से सभी को
लाभान्वित करते हुए उन्होंने बुन्देलखण्ड में प्रवेश किया और ललितपुर जैसे LF नगर में चातुर्मास स्थापित किया। ललितपुर अपने प्राचीन एवं विशाल मंदिरों
तथा विशाल जैन समाज के कारण प्रसिद्ध रहा है। ललितपुर में उस समय 91300 जैन परिवार रहते थे, जिनकी जनसंख्या 1200 के करीब थी।
बाद में बुन्देलखण्ड की यात्रा करते हुए मुनिश्री लखनऊ आये और वहाँ से गोरखपुर को विहार किया। यहाँ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन आप ही के सानिध्य में निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। यहाँ तपकल्याणक
के दिन मुनिश्री ने फिरोजपुर निवासी एक क्षुल्लक को उनकी प्रार्थना पर -- ऐलक दीक्षा दी। गोरखपुर से आप ससंघ सम्मेदशिखरजी की ओर मुड़ गये। ' सम्मेदशिखरजी की आपकी यह दूसरी यात्रा थी। इसके पूर्व वे युवावस्था
में गिरिराज की वन्दना कर चुके थे। सम्मेदशिखरजी में कुछ दिन ठहर कर
गिरीडीह चले गये। गिरीडीह समाज के निवेदन को ध्यान में रखकर आपने 4 अगला चातुर्मास वहीं करने का निर्णय लिया।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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