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51 तथा मदिरा-पान छुड़ाते थे। शिकार खेलना छुड़ाते थे। वे सबको सदाचारी बनने तथा गुरु का भक्तिपूर्वक नाम-स्मरण पर जोर देते।
चातुर्मास समाप्ति पर एक बड़ा समारोह मनाया गया, जिसमें बाहर केभी सैकडों व्यक्तियों ने भाग लिया।क्षल्लक शान्तिसागर जी ने परतापरा से आगे विहार किया और छोटे-छोटे गाँवों की जनता को सम्बोधित करते हुए अधुना पहुँच गये। यहाँ भी एक प्राचीन मंदिर है। जैन समाज के अच्छे घर है। अब क्षुल्लक जी का व्यक्तित्व उभरने लगा। समाज की गतिविधियों से वे अवगत होने लगे। उस समय दक्षिण भारत में क्षुल्लक
शान्तिसागर नाम के एक दूसरे क्षुल्लक जी थे। जिन्होंने दक्षिण भारत में जधार्मिक चेतना जाग्रत की थी। हमारे विचार से तो दोनों क्षुल्लक एक दूसरे
के नाम से परिचित अवश्य होंगे, क्योंकि सन 1921-22 तक जैन पत्र-पत्रिकायें निकलने लगी थीं और उनमें सामाजिक समाचार प्रकाशित हो रहे थे।
क्षुल्लक शान्तिसागरजी लोगों से मांस व मदिरा का त्याग कराते थे। TE वे ज्यादातर जैनेतर समाज में घूमते और उनको पूर्ण शाकाहारी बना कर,
मदिरा सेवन भी छुड़ा देते थे। महाराज श्री के प्रभाव से इन नियमों का 45 दिन दूना और रात चौगुना प्रचार होने लगा। बागड़ प्रान्त को उन्होंने अपनी
- कर्मभूमि बनाया और प्रारम्भ के दिनों में वहीं विहार करते रहे। उनको क्षुल्लक 21 बने हुए अभी एक ही वर्ष हुआ था। विहार करते हुए वे लोग ग्राम छाणी 4 आये। कहाँ युवा केवलदास और कहाँ क्षुल्लक शान्तिसागर? नाम, पहनावा, - रहन-सहन सभी कुछ तो बदल गया था। उनकी साधना की कीर्ति गाँव में । उनसे पहिले ही पहुंच चुकी थी। छाणी गाँव वालों को आनन्दानुभूति हुई
और उन्होंने क्षुल्लक जी का जोरदार स्वागत किया। उनके प्रति गाँव वालों TH की सहज श्रद्धा उमड़ पड़ी। उनके प्रवचन में सभी जातियों एवं धर्मों के -1 लोग आते थे। उनका प्रवचन अहिंसा प्रधान होता था और सभी से अहिंसक
जीवन अपनाने पर बल देते थे। छाणी में आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर गाँव वालों ने एक सरस्वती भण्डार की स्थापना की, जिससे लोगों में ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो सके । छाणी में आपके प्रभाव में भारी वृद्धि हुई और कितने ही गाँवों के श्रावक समाज उन्हें अपने-अपने गाँवों में विहार करने का
अनुरोध करने लगी। आखिर सागवाड़ा समाज की प्रार्थना स्वीकृत हुई और 31 उन्होंने संवत् 1980 (सन् 1923) का चातुर्मास सागवाड़ा में करने का निर्णय
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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