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15195455456454545454545454545454545 卐 कार्तिकवदी 11 सम्वत् 1945 हस्त नक्षत्र में हुआ था। 15 वर्ष तो बाल्यावस्था 卐
में व्यतीत हुए फिर कुछ साधारण कार्य-रोजगार तथा नौकरी की। 29 वर्ष : की उम्र में इनकी माताजी का स्वर्गवास हआ। इस उम्र में केवलदास को दो स्वप्न हए, एक तो श्रीसम्मेदशिखरजी की यात्रा करने का और दूसरा स्वप्न 4 बजे प्रभात को हुआ उसमें श्री बाहुबलीजी की प्रतिमा के समक्षपूजन कर बहुत सी सामग्री चढ़ाते अपने को देखा। तत्पश्चात् श्रीनेमिनाथ का विवाह सुनकर कुदेवों के पूजने और निशाहार का त्याग किया और श्रीभगवान के दर्शन करने का नियम लिया।
केवलदास के धर्म भाव उत्तरोत्तर बढ़ते गये, इनको इनके सम्बन्धी बम्बई वाले लल्लूभाई लक्ष्मीचन्द चोकसी व प्रेमचन्द मोतीचन्द की धर्मपत्नी चम्पाबाई के लड़के रतनचन्दजी ने एक-एक प्रति 'विषापहार, आलोचना पाठ और 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' की दीं। इनको पाकर केवलदास जी को इन्हें पढ
लेने का बडा चाव हुआ। वे इनको दूसरे पढे हुए जैनी भाइयों से पूछ कर TE पढ़ने लगे। फिर छाणी गाँव के पछोरी रूपचन्द भाई श्रीहरिवंश पुराण का
स्वाध्याय करते थे, उनके सुनने के लिये केवलदास जी नित्य जाते थे। आपके हृदय में शास्त्र स्वाध्याय की लगन घर कर गई थी।
एक दिन शास्त्रजी सुनकर वहीं से श्रीकेशरियानाथ जी की यात्रा को 1 चले गये। वहाँ श्रीआदिनाथ भगवान के दर्शन करके विवाह नहीं करने का नियम लिया, मानो कामान्ध वृद्ध साधर्मी भाइयों को ब्रह्मचर्य का प्रगट उपदेश ही दिया, आपके पिताजी ने विवाह के हित बहुत कुछ आग्रह किया पर आपने सर्वथा इन्कार कर दिया और कहा कि "मैंने आदिनाथ स्वामी के समक्ष विवाह नहीं करने का नियम लिया है।" तब पिताजी निराश हो गये।
एक दिन केवलदास जी शास्त्र सुन रहे थे, उसमें श्रीनन्दीश्वरद्वीप व्रत विधान का कथन आया, सो उसको भली-भाँति विधि सहित सुनकर मिती मार्गशीर्ष वदी 14 के दिन श्रीमंदिर जी में जाकर श्रीनन्दीश्वरजी का 108 दिन का व्रत-(एक उपवास, एक पारणा तथा एक बेला बीच-बीच में, जिसमें 56 उपवास, 52 पारणा (एकाशना) होगी, करने का नियम लिया। इस अवस्था से ही आपका धार्मिक जीवन प्रारम्भ हो गया। होनहार पूत के पाँव पालने' में ही नजर पड़ गये।
इसी समय आपने पिताजी से श्रीशिखरजी की यात्रा करने के निमित्त
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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