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सेतप्त नहा हुआ, इसलिए
45454545454545454545454545454545 ' आज्ञा माँगी। आपके पिताजी ने इन्कार किया और कहा कि "मैं यात्रा करने."
के लिये खर्चा नहीं दे सकता हूँ, हाँ यदि तुम विवाह करने को राजी हो - तो मैं रुपया खर्च कर सकता हूँ।" उस पर आपने विचार किया कि "पिताजी
हमको संसार में फँसाना चाहते हैं।" तब पिताजी से उजागर किया कि 1 TE "पिताजी! मैं इस संसार में अनन्त बार विवाह कर चका हैं, पर तो भी विषयों 1.
हिआ, इसलिये अब मैं संसारी स्त्री में न फंसकर मोक्ष रूपी स्त्री से ही विवाह करना चाहता हूँ। मैं श्रीसम्मेदशिखरजी की यात्रा करने अवश्य
ही जाऊँगा।" इतना कहकर वह वहाँ से अपने सम्बन्धियों से मिलने के हित ा में चल पड़े।
उस केवलदासजी (मुनिजी) ने सब सम्बन्धियों के कुटुम्बियों से क्षमा माँगते हुए कहा कि मैं इस संसार से भयभीत होकर आप लोगों से क्षमा माँगता TE हूँ, क्योंकि अब फिर मेरा आना इधर न होगा। यह कहकर आप वहाँ से अपने घर लौट आये और पिताजी से विनयपूर्वक निवेदन किया कि-"आप आज्ञा नहीं देंगे, तब भी मैं श्रीशिखरजी. जाऊँगा।" इस बात को सुनकर पिताजी ने सोचा कि "अब यह घर में रहने वाला नहीं है, इसलिए आज्ञा प्रदान की। तब घर में भोजन करके सब गाँव वाले भाइयों और अपने कुटुम्बियों से मिलकर सभों से क्षमा मांगी और अपने पूज्य पिताजी से भी क्षमा माँगी। उस समय पिताजी ने सिर्फ पाँच रुपये दिये। अब खर्च के अर्थ उनके पास कुल बाईस रुपये हो गये। यह रुपये लेकर वह केशरियाजी आये। यहाँ दर्शन ! करके उदयपुर गये । उदयपुर से रेल द्वारा अजमेर, अजमेर से मथुरा, मथुरा से वनारस, वनारस से ईसरी, और ईसरी से श्रीशिखरजी पहुँच गए।
दूसरे दिन श्रीशिखरजी की यात्रा करते ही उनका यह भाव हुआ कि "यहाँ भगवान के निकट रह जाना ठीक है", पर थोड़े ही समय के पश्चात वह भाव पलट गया, तब पहाड़ से उतरकर नीचे आये। फिर दूसरी वन्दना की, तब भी वहाँ नहीं रहे। जब तीसरी वन्दना को गये तब अज्ञानता से सब कूटों पर सब भगवन्तों से विनय करते गये कि मैं आज श्रीपार्श्वनाथजी के
कूट पर ब्रह्मचारी की दीक्षा लूँगा, आप सब वहाँ पधारिये। यदि यह निपट । अज्ञानता थी तो भी भाव बडे ही शद्ध थे। फिर श्रीपार्श्वनाथ भगवान के कट
पर जाकर सब सन्तों की स्तुति की, और कहा कि “सब भगवान मुझको ब्रह्मचारी की दीक्षा देवें। उसी समय श्रीपार्श्वनाथ भगवान की साक्षी में
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ नानानानानानानानानाना
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