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आत्म प्रबोधो जग संबोधो, परमभाव उद्वेग किए।
मोक्ष प्रचारक जय-जय कारक, परम शांति संदेश दिए। नित उद्बोधित जिय सम्बोधित, परम तपस्वी धीर हुए। परमावश्यक षट् आवश्यक, पाल गुप्ति गंभीर हुए।। भवोदधि तारक शिवमगकारक, दे उपदेश प्रवीण हुए। ममता हारक समता धारक. करत सुतप तन क्षीण हुए।। आत्म प्रबोधो
दर्शन ज्ञान चरित्र प्रधानी तप संयम गुण शील सने। पद परमोत्तम धर्मजगोत्तम, आचारज परमेष्ठि बने।। नमन हमारा सौ-सौ बारा, सविनय हर उल्लास किए। भरे भावना करें कामना, जन-जन का परमार्थ किए।।
आत्म प्रबोधो जग संबोधो ....... जैन जैन हम एक वृक्ष पर, पात पात बहुजाति किए। मिलें परस्पर भविप्रेम से, बिखरे ना संताप किए।। बने हमारी बुद्धि सुभावी, वात्सल्य सम भाव किये। समकित धारे चरित संभारे, श्रावक धर्म प्रतीति किए।। आत्म प्रबोधो जग संबोधो, परम भाव उद्वेग किए।
मोक्ष प्रचारक जय जय कारक, परम शांति संदेश दिये। ललितपुर
पं. पवन कुमार शास्त्री "दीवान'
शत-शत श्रद्धा से नमामि है प्रशम मूर्ति आचार्य प्रवर शान्तिसागर छाणी को प्रणाम है। परम दिगम्बर वीतराग ऋषिवर की, शत शत श्रद्धा से नमामि है।।
राजस्थान बागड़ प्रदेश में छाणी ग्राम था चमकाया सम्वत् उन्नीस सौ पैंतालीस में पावन दिन पावन बन आया कार्तिक वदि एकादश दिन जब बड़े भाग्य से भागचन्द ने पाया।। माँ "माणिकबाई" के उर से जब केवल मणिसा सुत पाया। नाम रखा जब केवलदास का किया गजब का काम है। ज्ञानमूर्ति श्री शान्तिसागर को, श्रद्धा सुमन नमामि हैं।।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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