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कहें लाल तुम सुनो पिताजी, मुक्ति रमा को करूँ बहाल।। जब पहुँचे यह तीर्थराज पर, श्री पार्श्व प्रभु सन्मुख मूरत। कर केशलोंच जी ब्रह्मव्रत दिक्षा, और परिग्रह परमाण वरत।।
जिला बांसवाड़ा में गढ़ी ग्राम की, पुण्य भूमि तब हुई पावन ।
क्षुल्लक दीक्षा ली श्री आदि प्रभु से, नाम पाया श्री शांतिसागर। कर उग्रतपस्या तीस दिवस की, अनशन तप गुरूवर कीना। जब हुआ प्रबल वैराग्य आपका, सागवाडा में मुनिव्रत ले लीना।।
प्रखर क्षयोपशम सम्यग्ज्ञान का भक्तों ने जब गुरूवर में देखा।
कर आचारज पदवी से संयुत, धन्य हुई वह भाग्योदय रेखा।। ग्राम-ग्राम में नगर-नगर में, श्री गुरूवर उपदेश दिया। जो जन वंदन करता उनका, पाता अनुपम शान्ति हिया।।
पुण्य बेला वह व्यावर नगरी, जब मिले परस्पर शांतिसागर।
हुआ वर्षा योग जब एकहि भूमि, भरली प्यासों ने गागर।। धर्म अहिंसा, जीवदया, पियो छनाजल, निशि भोजन न भूल करो। दें उपदेश श्री गुरूवर जी, तप स्वाध्याय तुम खूब करो।।
शिष्य परम्परा जिनकी देखो, वीर नमि श्री मल्लिसागर।
जयवन्त रहें कल्याण करें, करूँ नमन उपाध्याय ज्ञान सागर।। स्मृति ग्रन्थ की पुनीत वेला में, हम शत शत वंदन करते हैं। जो चलते उनके ही पथ पर, मुक्ति रमा को वरते हैं।।
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परम पूज्य आचार्य प्रवर श्री ज्ञानतपोनिधि गण आगर। जनमन हारक भवि उद्धारक शांति सिन्ध शान्तिसागर।। बाल ब्रह्मचारी वैरागी, दृढ़ संवेग विवेक लिए। चऊ मंगल लोकोत्तम शरणहि, धर प्रतीति उद्रेक लिए।। आत्म प्रबोधो, जग संबोधो, परम भाव उद्वेग किए। मोक्ष प्रचारक जय-जय कारक, परम शांति संदेश दिए।
परम दिगम्बर तज आडम्बर, भेष धार मनिमार्ग किये। ज्ञान उधारो धर्म प्रचारो, वीतराग सन्मार्ग किए।। चऊ आराधन परमाराधन, मनोकामना परम प्रिये।
निज गुणसाधित पूर्णअवाधित, साधुमार्ग परशस्त किये।। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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