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पावन होने लगा धरती का कण-कण
जब दिया जलता है तो आंधियाँ परीक्षा लेने आ जाती हैं। लेकिन :
फानूस बनके जिसकी हिफाजत हवा करे। ____वो शमा क्या बुझेगी, जिसे रोशन खुदा करे।। ऐसा ही एक दीपक जला-आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) अन्धकार में डूबा मुक्ति-मार्ग, पुनः आलोकित हो उठा। रत्नत्रय की आभा से, प्रकाश में देखा
अनेकों दिये रखे हैं, जलने को उत्सुक
भव्य आत्मायें, चलने को उत्सुक सन्मार्ग पर, मुक्ति -पथ की ओर। दिगम्बर मुनि मुद्राओं के, दर्शन से पुनः
धन्य-धन्य होने लगे, जन-जन/मन-मन और पावन होने लगा धरती का कण-कण ।।
शाहपुर
बालेश जैन
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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