________________
纷纷纷纷卐55555555555
भारत के नगरों में दूर-दूर तक पद-यात्रा करके दिगम्बर साधु के विहार
का मार्ग प्रशस्त किया। उनके जीवन-वृत्त से ज्ञात होता है कि सन् 1927
में, जब चारित्र - चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी दक्षिण का संघ सम्मेदाचल की वन्दना का ध्येय बनाकर कुम्भोज से नागपुर की ओर प्रस्थान कर रहा था, जब जनवरी 1927 तक पूज्य मुनि शान्तिसागरजी छाणी महाराज राजस्थान के अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुए, और इन्दौर तथा ललितपुर में अत्यन्त प्रभावक चातुर्मास व्यतीत करते हुए, पूरे मालवा, बुन्देलखण्ड और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में विहार कर चुके थे। इस बीच मालवा के हाटपीपल्या में उन्होंने अपने प्रथम शिष्य के रूप में ऐलक सूर्यसागरजी को मुनि दीक्षा प्रदान की ।
!
शिखरजी की यात्रा
मुनि श्री छाणी महाराज ने सन् 1926 ई. में अपने संघ सहित कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, अयोध्या और वनारस आदि उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों में विहार करते हुए अनादि सिद्धक्षेत्र श्रीशिखरजी की यात्रा के लिए विहार किया। पिछली अनेक शताब्दियों के ज्ञात इतिहास में यह पहली घटना थी, जब कोई दिगम्बर मुनि दूर से भ्रमण करते हुए, अपने संघ के साथ पर्वतराज की वन्दना के निमित्त वहाँ तक पहुँच रहे थे। ब्र. भगवानसागरजी ने छाणी महाराज की इस अभूतपूर्व यात्रा का अपनी पुस्तक में सरस वर्णन किया है। वह इस प्रकार है
- "मुनिजी के आगमन के समाचार सुनकर श्रीशिखरजी बीसपंथी कोठी के मुनीम और हजारीबाग के जैनी शिखरजी से हाथी लेकर मुनिजी की आगवानी के लिये उनके पास आये। जब मुनिजी ने पूछा कि - "हाथी क्यों लाये हो?" तब कहने लगे कि - "प्रभावना के निमित्त खुशी में लाये हैं, क्योंकि आज तक, कोई मुनि महाराज, सौ-डेढ़ सौ वर्षों के बीच में यहाँ नहीं आये हैं। इसलिये धर्म-प्रभावना को बढ़ाने के लिये हम श्रावकों का जो कर्तव्य था सो ही हमने किया है।"
555554646955555555
मुनि महाराज शिखरजी आये और दूसरे दिन तीन बजे मुनिजी और
वीरसागरजी दोनों ने श्रीशिखरजी पर्वत की वन्दना के लिये प्रस्थान किया।
कुछ कूटों की वन्दना की, फिर सामायिक का समय देख जल-मंदिर में ठहर प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
131
卐卐卐卐666卐卐卐卐卐卐卐卐卐