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प्रश्रय देने के स्थान पर उपयोगी और व्यावहारिक निर्णय लेकर समता से स्वयं अपना मार्ग प्रशस्त कर लिया।
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विद्वानों का समागम और आचार्यश्री की शानारावना
आचार्यश्री शान्तिसागरजी छाणी के जीवन-प्रसंगों का अवलोकन करने पर हम पाते हैं कि ज्ञान के प्रति उनके मन में आजीवन अनन्त पिपासा बनी रही। सामान्य अक्षर-ज्ञान की नगण्य पूँजी लेकर उन्होंने मोक्षमार्ग पर पहला पग रखा और चारित्र की सीढियाँ चढते हए ज्ञान की पँजी में भी समान्तर वृद्धि करते रहे। इन्दौर चातुर्मास में उन्हें स्वाध्याय कराने के लिये सरसेठ हुकमचंदजी साहब ने विद्वानों की नियुक्ति की। अन्यत्र जहाँ भी विद्वानों का सम्पर्क मिला और अवसर मिला, वहीं-वहीं आचार्यश्री की ज्ञानाराधना चलती रही। सागवाड़ा वाले पं. बुधचन्दजी ने उन्हें आलाप-पद्धति और गोम्मट्सार का अभ्यास कराया।
उस समय के प्रायः सभी व्रतियों और विद्वानों का सम्पर्क आचार्यश्री को प्राप्त हुआ। पूज्य ऐलक पन्नालालजी, पूज्य बाबा गणेशप्रसादजी वर्णी, कलकत्ता के भगतजी, ब्र. शीतलप्रसादजी, पं. वंशीधरजी न्यायालंकार, पं. खूबचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री, पं. देवकीनंदनजी तर्क-तीर्थ, पं. झम्मनलालजी कलकत्ता, पं. शिवजीराम पाठक राँची, पं. माणिकचन्दजी मुरैना, पं. लक्ष्मीचन्दजी लश्कर, पं. जयदेवजी और पं. नन्दनलालजी ईडर आदि गणमान्य त्यागीव्रती और विद्वान्, जिसे जब जहाँ अवसर मिला तब, बार-बार छाणी महाराज के दर्शनों के लिये आये या अपने स्थानों पर समागम मिलने पर उनके सम्पर्क का लाभ लिया। इनमें से बहुतों ने तो पूज्य महाराजश्री को आगम-ग्रन्थों के स्वाध्याय में सहयोग भी किया।ये विद्वान प्रायः आचार्यश्री की धर्मसभा में बोलते थे और देव-शास्त्र-गुरु की उपयोगिता तथा वन्दनीयता का उपदेश समाज को देते थे। समाज में प्रचलित व्यसन और कुरीतियों के निवारण में भी वे महाराज के सहायक बनते थे।
मालवा प्रान्तिक महासभा के उपदेशक पं. कस्तरचंदजी ने अनेक स्थानों पर जाकर आचार्यश्री की प्रेरणा से स्थापित संस्थाओं के लिये द्रव्य एकत्र किया । बम्बई प्रान्तिक दिगम्बर जैन सभा के सदुपदेशक और तार्किक
विद्वान् कुँवर दिग्विजयसिंह तो छाणी महाराज की त्याग-तपस्या से इतने + प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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