________________
नाना-I-IIIIEIF0001
छाणी वाले बाबा
छाणी छाडि एक न मानी हुए दिगम्बर वीरा श्री शान्ति सिंधु गंभीरा
मेवाड़ भूमि के वरद पुत्र
माता माणिक ने जाये। आतम हित के हेत जिन्हें संसार भाव नहीं भाये।।
बालपने में ही दुर्धर व्रत
ब्रह्मचर्य धर लीना। बाल ब्रह्मचारी होकर के प्रभु भक्ति चित दीना।
तीर्थराज सम्मेद शिखर की
यात्रा कर हर्षाये। पार्श्वनाथ की टोंक पर आकर आतम भाव जगाए।।
दृढ़ संकल्प तभी कर लीना
मुनि व्रत धारण कीना। करी तपस्या कर्म हनन को समता रस भरलीना।।
जगह-जगह पर भ्रमण करत रहे दिए उपदेश घनेरे। आतम हित के हेतु तुम्हें, मैं नमन करूँ चित पेरे।।
टीकमगढ़ (म.प्र.)
कु. रजनी जैन "शास्त्री"
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
121