________________
45454545454545454545454545454545
जाता जगत्याम् यदि वीरमाता। तत्पुत्ररत्नं किल कर्महन्ता स्वात्मस्थितः कामजयी प्रसिद्धः।। बाल्यात्प्रभृति यस्य मनः विरक्तं ब्रह्मव्रतं यो मनसा बभार तीर्थाटने यस्स मनःप्रवृत्तिः व्यक्तीकरोति हृदयस्थिततीर्थभक्तिं सः केवलः केवलीदासो भूत्वा चकार भूमौ प्रखरां तपस्यां। समभावसहितः यः जहाँ शरीरम् । भूयात् ममेप्सितकरः भुवि शं प्रदाता ।।
शास्त्री मूलचन्द्र जैन
टीकमगढ
मस्तक हमें झुकाना है
जो मात्र पेट भर लेते हैं, अर जग में पेट भरें सबका। अपने तप संयम से जगका, जो रोज मिटाते हैं खटका ।। अपने अनुभव से जो जाना, वह जग को ही तो बाँट दिया। चारित्ररूप में ज्ञाननिधि को, बस अपने ही साथ लिया।। ऐसे मुनिवर के चरणों में, यह मस्तक हमें झुकाना है।
करके कुछ काम अरे, भैया, हमको मुक्ति में जाना है।। वाराणसी
पं. नेमीचन्द जैन
श्री शान्तिसूरि स्तुति जिनालये सुतीर्थकृत
ऋषभपदे स्वदीक्षितम् । स्वभावगुणसमाहितं
नमामि शान्तिसागरम् ।।1।।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
119
454545454545454545454545454545455