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ध्याऊँ गाऊँ उनके गुण मैं अरू मूर्ति बसे उनकी मन में मैं निश्चित उनके गुण पाऊँ चरित्र करूँ निश्चित मन में मैं करूँ स्तुति जिनवर की मैं भी उनके सम रूप धरूँ। मैं नमन करूँ अति भाव पूर्ण मैं शान्ति सधारक पान करूँ।।
जयपुर
प्रभुदयाल कासलीवाल
शत-शत नमन हमारा है
"शान्तिसागर छाणी मुनिवर को, शत शत नमन हमारा है"
धन्य भागचन्द माँ मणिका सी, माता विरली धन्य हई हैं। छाणी की अगणित गाथायें, शांति जन्म से धन्य हुई हैं। केवलदास बना जिनवर का, दास प्रभु की शरण गही जब, ब्रह्मचर्य धारा जीवन में, नेमिनाथ की कथा सुनी जब। आदि प्रभु के परमधर्म का, मर्म सदा ही माना है, शांतिसागर छाणी मुनिवर को, शत शत नमन हमारा है।
मर्त्यलोक में धर्मराज्य के, झंडे अपने आप झुके, स्वप्न बालयोगि केवल के, दोनों ही साकार हुये। मर्त्यलोक में धर्म पिता की, देह चिता पर जलती है, स्वर्गलोक में अमर आत्मा, शांति छाणी की गलती है। दिव्य छटा शांतिसागर की, जिनवर की शुभ धारा है। शांतिसागर छाणी मुनिवर को, शत शत नमन हमारा है।
उपसर्गजयी मुनिवर महान थे, सभी कुरीति दूर हुई थीं। उपदेशों से कई विरोधी, मानव मन की कलख धुली थी। संयम सदाचार की धारा, निर्मल जिसने सदा बहाई। सुखद शांति दायक सुबोध की, अमल अखंडित ज्योति जलाई। अगम ज्ञान भंडार धनी को, सब जग शीश झुकाता है, शांतिसागर छाणी मुनिवर को, शत शत नमन हमारा है।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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