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आगमज्ञाता
आचार्य शान्तिसागर जी छाणी परम पूज्य चारित्रचक्रवर्ती 108 आचार्य म श्री शान्तिसागर जी महाराज दक्षिण वालों के समकालीन समय के साधु थे। TE उनका जन्म राजस्थान प्रान्त के अन्तर्गत ग्राम छाणी (बागड़ प्रदेश) में संवत 1945 में हुआ। उनका जन्म नाम केवलदास, पिता का नाम भागचन्द और माँ का नाम माणिकबाई था। संवत् 1980 में मुनि दीक्षा ली और 1985 में आचार्य पद तथा 2001 में समाधि मरण हो गया। वे सरल स्वभावी, आगमज्ञाता दिगम्बराचार्य साध थे। उन्होंने अहिंसा धर्म का प्रचार, किया तथा साथ ही । साथ श्रावकों में श्रावक धर्म का प्रचार, अष्ट मूल गुण धारण कराना, अणुव्रतों का महत्व बतलाना, श्रावक के षट् कर्म आदि विषयों का उल्लेख उनका मुख्य लक्ष्य था। ऐसे साधु के चरणों में शत-शत वंदन।। सवाई माधोपुर
पं. लाडली प्रसाद जैन
जिनमत के सच्चे आराधक
भारत श्रमणों का देश है। इसे विश्व में धर्मगुरु भी माना जाता है। ॥ प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर जी छाणी ऐसे समय में वीतराग मार्ग में प्रवृत्त हुए थे, जब मुनि परम्परा का अभाव था। साधु वर्ग की महान् परम्परा को अविस्मरणीय बनाने हेतु युवा मुनि श्री उपाध्याय ज्ञान सागर जी की सद्प्रेरणा से शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। यह एक महान कार्य है। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज एक आदर्श श्रमण सन्त थे। उनके चरण संयम और तप के द्वारा सधकर सदाचरण में तत्पर रहते थे।
मैं उन महान् सन्त के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता 4 हूँ। मेरी भावना है, कि त्याग और जिनमत के सच्चे आराधक, प्रशममूर्ति
आचार्य शान्तिसागर जी हमारे जीवन पथ को ज्ञानालोक से प्रकाशित व प्रभावित करते रहें, ताकि हम सब सन्मार्ग की ओर अग्रसर होते रहें। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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