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शतशः नमन
30 वर्ष की भरी जवानी में जिनके संयम एवं वैराग्य का बीज, आजीवन ब्रह्मचर्य प्रगट हुआ। जो वृद्धिगत रहा तथा पूर्ण दिगंबरत्व तक पहुंचा। विवाह प्रसंग को यह कहकर ठुकरा दिया कि यह अनंत वार कर चुका हूँ, अब 4 मुक्तिवधू का वरण करूँगा। निसंदेह यह सब उनके दृढ़संकल्प, अविचल श्रद्धा और सम्यक्त्व का द्योतक है। ऐसे परम पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी के चरण कमलों में इसी पथ की कामना सहित शतशः नमन। ललितपुर (उ.प्र.)
पं. जीवनलाल शास्त्री आचार्य
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विनयाञ्जलि परमपूज्य आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज राजस्थान की मरूभूमि में सर्वप्रथम संयम साधना कर उदित हुए। जैसा कि पढ़ने में आया था कि आपने देवसाक्षी और आत्मसाक्षी पूर्वक ही संयम ग्रहण किया था और अपने आत्मबल के आधार पर ही आचार्य पद पर आरूढ़ हुए।
मेरे अजमेर में बसने के पूर्व ही यहाँ जनता के मुख से यह सुन पाया था, कि परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज का अजमेर में विहार हुआ और बाद में व्यावर में श्री रा. व. सेठ चम्पालाल जी रामस्वरूप जी के बगीचा में दोनों आचार्य संघ ने चातुर्मास किये थे। बड़ा उत्साह रहा। श्री राव धर्मवीर सेठ टीकमचन्द्र जी सोनी प्रतिदिन आहारार्थ व्यावर जाते थे।
गत वर्ष पर्युषण में व्यावर जाने का अवसर प्राप्त हुआ, तो वहाँ रानी वाला परिवार के वयोवृद्धों से वहाँ की वह घटना सुनने को मिली। यह एक - अपूर्व ऐतिहासिक घटना रही। जब राजस्थान में ऐसा अविस्मरणीय और
अकल्पनीय समारोह सम्पन्न हुआ। इस धर्म कथा को सुनकर आज भी आश्चर्य होता है। कहां तो मुनिधर्म दर्शन ही नहीं होता था और कहाँ दो संघो का
एक साथ योग। पप्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर मणी स्मृति-प्रय
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