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युग युग का इतिहास उन्हें जीवित रक्खेगा घर घर। भू मण्डल पर दीप्तवान हैं सोम और रवि सागर, तब तक उनकी परम्परा के दीपक रहें उजागर।।
आत्म साधना में रत जिनका ब्रह्मचर्य भगवान। ऐसे सन्त शिरोमणि के चरणों में कोटि प्रणाम ।।
4 प्रतिष्ठाचार्य टीकमगढ़ (म.प्र.)
पं. विमल कुमार जैन, सोरया.
तुमको नमन शत वार है
शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतवार है। धर्म-ज्योतिर्धर तुम्हें वंदन मेरा शतवार है।।
भूमि राणा की पुनः कृत्यकृत्य पा तुमको हुई। भूमि छाणी ग्राम की पाकर तुम्हें पुलकित हुई।। भाग्य जागे पिता के जो स्वयं भागचन्द्र थे। माणिक माँ के धन अमोलक रूप में तुम इन्द्र थे। नाम केवल' सार्थक तुमने किया निज कर्म से। आत्मा केवल चिरंतन जान पाये धर्म से। धर्म-धारक चरण में लो वंदना उपहार है। शांति के सागर मुनि तुमको नमन शतबार है।।
(2)
घर में रहकर भी कभी घर से नहीं नाता रहा। धन-कुटुंब के साथ रिश्ता पंक-पंकज-सा रहा। नेमि प्रभु का चरित सुनकर दीप आतम के जगे। मोह के बादल छंटे जब सत्य के सूरज जगे। मैं नहीं हूँ देह, मैं हूँ आत्मा शाश्वत अमर। देह भी रोमावलि से फूटते थे यही स्वर। सोचते थे मरण-जीवन यहाँ बारंबार है।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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