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त्यागाय जीवनं यस्य सत्याय मितभाषणं । रत्नत्रयोऽपवर्गाय संयमं तपसाधनम् । स्वाध्यायैवाशनं पानं ध्यानं सामायिकं तथा।
सूर्यसिन्धुः शिष्यो यस्य शान्तिसिन्धुं नमामि तम् ।।4।। काले कलौ चले चित्ते देहे चान्नादिकीटके। एतच्चित्रं चमत्कारं जिनरूपं त्वया धृतम्। भवत्प्रशान्तमुद्राऽपि मुक्तिपथानुप्रेरिका। स्थितप्रज्ञमनासक्तं शान्तिसिन्धुं नमामि तं।5।।
सिंहवृत्तिं दधानः यः हस्तिवत्स्वाभिमानिनं। वृषभव भद्रशोभा मगेव सरलं मनः । निरीह वृत्तिं तेजस्विं चन्द्रवत् शमशीतंद।
गम्भीरमनियतवासं शान्तिसिन्धुं नमामितं ।।6।। जय जय जय श्री शान्तिसागर मुनि अपजय मम स्वान्तध्वान्तं भय-भ्रम कारण यः नय नय नय भज स्वामिन शान्तिसुधासरः नहि नहि ममत्राता ज्ञानसंयमात परः ।।7।।
जीवन लाल शास्त्री
प्राचार्य श्री स्याद्वाद सिद्धान्त संस्कृत महाविद्यालय ललितपुर (उ.प्र.)
प्रणमाञ्जलि
निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुद्रा का पाया जिनने उपहार, आत्म तेज से ज्ञानज्योतिका किया जगत उपकार। सम्यक्ता का अलंकरण जिनके अन्तस में छाया, और साधना से साधकता का गौरव पद पाया।
क्षमा हृदय मार्दव मन जिनका सत्य स्वयं के साथ, आर्जव अन्तस बना शौच का बाना जिनके पास।। संयम की सुगन्ध थी जिनमें तप का तेज प्रकाश, और सत्य की ऊंचाई पर था जिनका विश्वास।।
प्रशम मूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी सा ऋषिवर, प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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