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घर-घर जा स्वयमेव से रूदि, अंध विश्वास हटाकर लिया कहीं विश्राम है।9।।
"दक्षिण" छाणी शांति सिंधु द्वय मिलकर बैठे पास में चातुर्मास नगर व्यावर था
धन्य हुआ इतिहास में। जैन धर्म की कीर्ति पताका पहरी जगह तमाम है। 11011
सूर्य लाभ औवीर सिंधु मुनि जिनके शिष्य प्रधान थे धर्म प्रचार-प्रसार हेतु जो
अति उद्भट विद्वान थे छाणी के श्री शांति सिंधु का किया उजागर नाम है
छाणी के शांति सिंधु को बारंबार प्रणाम है। [111) जयपुर
अनूपचन्द न्यायतीर्थ
शांतिसिन्धुं नमामि तं
छाणीग्रामं सुखदधामं शान्तरूपं सुशोभितं। न्यायप्रियं कुलोत्पन्नं धार्मिकं मदवर्जितं। विद्याविभवसंपन्नमनिन्द्रियसुखमाप्तवान्। शमदमादिगुणैर्युक्तं शान्तिसिन्धुं नमामि तं ||1||
चन्द्रवद्यस्य कीर्तिः स्यात् त्रिभुवनव्यापिनीम ता। दुर्वारमारजित स्वान्तं निशल्यं भयाकुलं। निर्भयं शंकयायेतं दयार्द्रमार्जवं च यत्।
ज्ञानध्यानरतो साधु शान्तिसिन्धु नमामि तं ।।2।। युक्तितर्काम्यां व्याप्तं प्रवचनं सिंहगर्जनं। श्रुत्वा यम्मदवर्जन्ति मिथ्यात्वादादी जनाः। रागद्वेष-विभाववर्जितंमतिं सालोक गोस्वामिनं। दयासिन्धुं जगवंधुं शान्तिसिन्धुं नमामि तं ।।3।।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ TELELELELELELELECIEEEEEEE -FIFIEDIFFIFIFIFIFIFIFTIFI