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व्यावर में चातुर्मास किया। दोनों समकालीन आचार्य थे। आपने कुरीतियों, अंधविश्वासों, मिथ्या मान्यताओं का उन्मूलन कर शुद्धाम्नाय का सम्यक् पोषण
एवं सम्वर्द्धन किया। श्रमण संस्कृति के सजग प्रहरी बनकर जगह-जगह -1 विद्यालय पाठशालाएं, गुरुकुलों की स्थापनाएं करा कर महान् उपकार किया।
आपके पावन चरण-कमलों में श्रद्धा-विनय-भक्तिपूर्वक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। टीकमगढ़ (म.प्र.)
डॉ. सर्वज्ञ देव जैन सोरया
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श्रद्धा विनय समेत आपके चरणों में प्रणाम...
बीसवीं सदी के आरंभ में प्रथम चरित्रनायक समाधिसम्राद, घोर तपस्वी, शुद्ध आम्नाय प्रवर्तक, अनुभवी सन्त, प्रखर वक्ता, शान्तस्वभावी, सौम्यमूर्ति,
युगद्रष्टा, उपसर्गविजेता, परमपूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी 37 ने सम्पूर्ण भारत की जैन समाज को श्रामण्य का पाठ पढ़ाया। विलुप्त दिगम्बर
जैन मुनि परम्परा को पुनजीवित करने का महान् श्रेय प्राप्त किया है। ऐसे महान् सन्त की पावन स्मृति में प्रकाश्य ग्रंथ का वन्दनीय श्रेय युग पुरुष महान् सन्त उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी को है। उनके पावन चरणों में मैं श्रद्धाभक्ति पूर्वक अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ। टीकमगढ़ (म.प्र.)
अहंतसरण जैन
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'प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 5454545 45454545454545454545