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वन्दन-अभिनंदन है
कार्तिक वदी ग्यारस के दिन जिनका हुआ जनम है, आचार्य शांतिसागर छाणी का वंदन अभिनन्दन है, राजस्थानी जिला उदयपुर छाणी ग्राम सुहाना माणिकबाई की गोदी में हुआ स्वर्ग से आना संवत् उन्नीस सौ पैंतालिस की शुभ बेला आई, पिता भागचन्द जी के घर में बजने लगी बधाई, पंडित ने आकर के देखी इनकी जनम लगन है. श्री आचार्य शांतिसागर का वंदन अभिनंदन है।। पंडित ने बतलाया बालक घर पर नहीं रहेगा, भारत भर में धूमधाम जग का कल्याण करेगा, शादी नहीं करेगा बालक ये भी ध्यान में लाना केवल दास नाम रखकर पंडित हो गया रवाना पुण्य योग से ही मिलती ऐसी शुभ घड़ी लगन है, श्री आचार्य शांतिसागर का वंदन अभिनन्दन है।। शिक्षा से लेकर अल्प समय में घर का काम संभाला. शादी का संदेश आया साफ मना कर डाला, क्षेत्र शिखर पर पार्श्वनाथ से ब्रह्मचर्य व्रत लाये। ग्राम गढ़ी में आदिनाथ ढिग क्षुल्लक जी बन आये। क्षुल्लकश्री शांतिसागर को सौ सौ बार नमन है श्री आचार्य शांतिसागर का वंदन अभिनंदन है।। उस युग में उत्तर भारत में मुनि दर्शन दूभर था, दक्षिण में भी यदा कदा ही मुनि दर्शन होता था, तब ऋषभदेव के समक्ष सागवाड़ा में मुनि दीक्षा ली, सिंहवृत्ति से मुनिवर की सारी क्रियाएँ पाली, स्वयं दीक्षाधारी बन कर्मों का किया शमन है,
श्री आचार्य शांतिसागर का वंदन अभिनंदन है।। माप्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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