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ऐसा भी प्रामाणिक रूप से सुनने में आया कि इसके पूर्व श्री चन्द्रसागर। जी महाराज नामक कोई मुनि सर्वप्रथम झालरापाटन में आये थे।
आचार्य शान्तिसागर छाणी शान्त स्वभावी, पंथ व्यामोह रहित, सरल स्वभावी, निग्रंथ साधु रहे और कई वर्षों तक अपनी धर्मदेशना से राजस्थान में धर्मोद्योत करते रहे। निग्रंथ साधुओं का हम पर परम उपकार है।
उनकी स्मृति में ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है, यह प्रसन्नता की बात है। दिवंगत आचार्य मोक्ष पथानुगामी हों यही मेरी विनम्र विनयाञ्जलि है। नमोस्तु गुरुचरणेषु अजमेर
हेमचन्द जैन शास्त्री
सद्गुरु के पावन चरणों में मेरा शतबार नमन है ___ परम आध्यात्मिक सभा पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी सम्पूर्ण भारत के तीर्थों की बंदना करते हुए आज से ७० वर्ष पूर्व बुन्देलखण्ड भूमि पर पधारे थे। वह भव्यों को मधुर प्रभावी, सारगर्भित, सदुपदेशों से LE अनुप्राणित करते हुए कट्टरतापूर्वक 28 मूल गुणों का पालन करते थे। वह आदर्श संयमी, मोक्ष मार्ग के प्रशस्त साधक थे, समाज के प्रति किया गया उपकार इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी उन्हें गुरु तुल्य मानकर सदैव मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे। ऐसे महान आचार्य के जीवन को बहुआयामी रूप में लाने का जो लोकोत्तर श्रेय उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी ने किया, यह बहुत बड़ा कार्य है। ऐसे युगद्रष्टा TE आचार्य श्री के पावन चरणों में मैं अपनी श्रद्धाञ्जली समर्पित कर मडावरा, ललितपुर
सिं. पं. जम्यूप्रसाद जैन शास्त्री।
शत-शत बार नमन है... प्रातः स्मरणीय परमपूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी 21 शताब्दी के आरंभ में एक महान सन्त हुए हैं। इन्होंने ही इस शताब्दी में । LF चारित्र प्रवर्धन की एक ऐसी अक्षुण धारा प्रवाहित की, जिससे अनेक भावी 51
पीढियाँ धन्य हो गई। वह उस यंग में प्रशांतमति के रूप में ख्यात थे। चा.. 51 च. आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज (दक्षिण) के साथ सन् 1933 में ।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ नामा
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