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पदार्थ हैं, इसका त्याग करो। तभी सभी जैन व अजैन लोगों ने अपनी-अपनी कमीज और कुर्तों व जाकेटों के बटन तोड़कर फेंक दिये और कभी न लगायेंगे, प्रतिज्ञा कर ली। अब आया नम्बर "फैल्ट कैप" का यह वह टोपी है जिसमें मुलायम क्रूम (चमड़े) की पट्टी लगाई जाती है, तब महाराज जी ने कहा, देखो अपनी-अपनी टोपियों को इसके भीतर क्या लगा है? महाराज श्री ने बताया यह जो पट्टी लगी है वह गर्भस्थ शिशु भेड़-बकरियों के गर्भ से ही प्राप्त मुलायम चमड़े की बनती है, यह घोर पाप का कारण है, अनेक सम्मूर्च्छन जीवों की उत्पत्ति का कारण है, इस टोपी को लगाकर आप लोग मंदिर भी जाते हैं,
रोटी भी खाते , आप लोग कैसे अहिंसक हैं? तत्काल
सभी प्रबुद्ध जैनों ने टोपियाँ उतारकर फेंक दीं और कभी "फैल्ट कैप" नहीं लगाने की प्रतिज्ञा कर ली, इसी प्रकार कमर में बांधे कमरपेटियों को भी निकलवा दिया और आजीवन चमड़े का परित्याग करा दिया।
आज का युग भोग विलास का युग है, लोग भौतिकी चकाचौंध में बहकर चमड़े की अटेची, सूटकेस, मनीबैग आदि का बड़े गौरव से प्रयोग करते हैं । यहाँ तक कि बालोंदार चमड़े के बने हुए गर्म स्वेटर आदि बड़े गर्व से पहिनते हैं, जूतों की तो बात ही अलग है, जो नहीं बर्तना चाहिए।
कन्दमूल
की
महाराज जी ने अपने प्रवचन में देवदर्शन करना, रात्रि भोजन, कन्दमूल आदि के त्याग की बात कही, तो एक बालक उठ कर कहता है कि महाराज जी हम लोग बिना देवदर्शन किए पानी भी नहीं पीते, न ही रात्रि को भोजन करते हैं, सूर्यास्त से पूर्व ही "अन्थऊ" कर लेते हैं, फिर त्याग की क्या बात रही, कन्दमूल क्या है, हम नहीं जानते तब महाराज श्री ने परिभाषा को समझाकर कन्दमूलों का त्याग कराया, त्याग की आवश्यकता को समझाते हुए रात्रि भोजन का त्याग कराया, देव दर्शन की प्रतिज्ञा दिलायी । इसी क्रम में महाराज श्री ने कहा कि भाइयों! आप लोग जन्म से जैन हो । परम्परागत जैन संस्कारों को बड़ी मजबूती से पालते हो, पर आप लोग अभी जैन नहीं हो, जैन वे हैं, जो आठ मूलगुण को धारण करते हैं, वे आठ गुण-मद्य, मांस, मधु और पांच उदम्बर फलों का त्याग करने से माने जाते हैं। इन मूलगुणों को पाले बिना जैन नहीं, श्रावक नहीं, तब हाथ उठाकर सब लोगों ने प्रतिज्ञा की और सच्चे जैन श्रावक बन गये।
इस प्रकार आचार्य श्री छाणी ने अपने साधुत्व जीवन काल से प्रत्येक
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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