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सागर से सागर
लोक में यह देखा जाता है कि सागर के विशाल गर्भ में रत्नों की विपुलराशि शोभायमान रहती है। सागर रत्नों को जन्म दे सकता है। पर सागर, सागर को नहीं, पर यह कर दिखाया पूज्य आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी छाणी महाराज जी ने।
रत्नत्रय को स्वयं में प्रकटाते हुए एक नहीं अनेकों सागरों को जन्म दिया। उनके द्वारा जन्मे सागरों ने भी अनेकों सागरों को जन्म दिया, जैसे श्री सूर्य सागर जी, आ. विजय सागर जी, श्री आ. विमलसागर जी, आ. सुमति सागर जी, आ. कल्प सन्मति सागर जी, उपाध्याय ज्ञान सागर जी। इस प्रकार अनवरत रूप से अनेकों सागरों और रत्नराशि को उत्पन्न किया, लेकिन जब
जैन समाज इन सागरों के उत्पादक स्रोत को विस्मरण कर बैठा तो ऐसे TE विस्मृत अपरिचित व्यक्तित्व के परिचय हेतु तथा उनके द्वारा किये गये
उपकारों के स्मरणार्थ स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन की आवश्यकता पड़ी, जिसके प्रेरणा स्रोत बने, पूज्य उपाध्याय ज्ञान सागर जी महाराज।
आ. शान्तिसागर जी का पार्थिव शरीर आज हम सभी के बीच में नहीं है, किन्तु उनके द्वारा प्रवाहित धर्म रूपी धारा हम सभी के बीच है। महान् निर्ग्रन्थ आचार्य श्री के पुनीत चरणों में असीम श्रद्धा भाव से शत-शत नमोस्तु।
ललितपुर
अ. रेखा जैन.
श्रद्धा-सुमन
यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि परम पूज्य उपाध्याय श्री TE ज्ञानसागर जी महाराज की सत्प्रेरणा से प्रशममूर्ति आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी) स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन का निर्णय लिया गया है।
प्रातःवन्द्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज श्री का पावन-जीवन
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रन्थ :
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