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Hiक्षण परोपकार में लगाते हुए अपने निर्मल चारित्र, संयम की छाप जन जन
के मन में अंकित की। वे रत्नत्रयनिधि के स्वयं खजाना थे तथा दूसरों को रत्नत्रय का मार्ग दिखाते थे। त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति महाराज जहाँ जहाँ गमन करते थे, वहाँ के लोग आवालवृद्ध नंगे पैर भयंकर ग्रीष्म दुपहरी में भी विदाई और अगवानी करते थे। धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा थी, भक्ति थी, आज की तरह औपचारिकता नहीं थी, श्रावकों के प्रति भी महाराज श्री के वात्सल्यपूर्ण अनुग्रह के भाव थे।
ऐसी परम पूज्य आत्मा के पावन चरणों में अनंतबार नमन करता हुआ इस स्मृति ग्रन्थ के माध्यम से श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ और समाधिमरण की वाञ्छा। ऊँ ह्री अनन्तानन्तपरमसिद्धेभ्यो नमो नमः।
राजवैद्य पं.भैय्या शास्त्री
- शिवपुरी
चरणों में नमोस्तु ___ दिगम्बर आचार्य प. पू. श्री शान्तिसागर (छाणी) की स्मृति में श्रद्धाञ्जलि देने के लिए स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन एक स्वागत योग्य उपक्रम है। महाराज श्री के दर्शन और चारित्र के योगदान से सभी फलीभूत हैं। हमारी श्रद्धापूर्वक विनयाञ्जलि अर्पित करने के लिए उनके चरणों में नमोस्तु :
देहली
अक्षय कुमार जैन
श्रद्धाञ्जलि बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में जब दिगम्बर मुनि परम्परा की प्रचुरता का अभाव होता जा रहा था, तब आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी ने इस | वसुंधरा पर जन्म लेकर, दिगम्बर मुद्रा धारण कर जैन समाज को कल्याणकारी LE धर्मोपदेश दिया और प्रच्छन्न मुनिमुद्रा के दर्शन दिये। ऐसे परम पूज्य गुरू
के चरणों में हमारी श्रद्धाञ्जलि समर्पित है। शिवपुरी
सौ. सुनीता शास्त्री एवं सौ. शोभा शास्त्री
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - -ााााा .