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+ मकान नहीं बने थे। भारी भीड़ प्रवचन सुनने वहाँ पहुँचती थी। दो दिन के
बाद संघ विहार करने की तैयारी में था, तब राजा के पास खबर पहुँची कि 1 जैन मुनिसंघ आपके बगीचा में ठहरा था आज-विहार कर रहा है। राजा साहब
ने एक सिपाही को भेजकर कहलवाया कि अभी संघ वहीं रुके, हमारे राजा साहब दर्शनों को आना चाहते थे। इस आज्ञा पर मुनिसंघ वहां रुका नहीं और वहां से विहार कर गया। आचार्यश्री ने कहा कि मनि किसी की आज्ञा
पर नहीं रुकते और न विहार करते अगर राजा किसी नगर का राजा है 51 तो मुनि भी अपने मन और तन का राजा है। महाराजा प्रतापसिंह ने छह TE किलो मीटर पैदल चल कर मुनिसंघ के दर्शन किए. उनसे धर्म के बारे में
अच्छी चर्चा की और बड़े प्रभावित हुए। उनकी निर्भीकता पर तो और भी प्रसन्न हुए। टीकमगढ़
पं. कमल कुमार शास्त्री
निर्वस्त्र सौन्दर्य और निःशस्त्र वीरता
अगर किसी को निर्वस्त्र सौन्दर्य और निःशस्त्र वीरता देखना है तो दि. जैन मनियों को देखिये। जिनके दर्शनों को लाखों की भीड़ उमड पडती है। और जो बिना शस्त्र लिए भारत भर में निर्भीक विचरण करते हैं। आचार्यश्री के जीवन वृत्त को पढ़कर जाना कि आपमें बचपन से ही विरागता के बीज पनप रहे थे, इसीलिए तो आपने छोटी अवस्था में ही आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया और दीक्षा लेने के विचार बना लिए थे। बाल्यकाल में ही भगवान नेमिनाथ का जीवन चरित्र सुनकर वैराग्य पनपने लगा था। और उस उक्ति को चरितार्थ किया कि होनहार विरवान के होत चीकने पात तथा निर्भीक विचरण एवं ध्यान से विचलित नहीं हुये, ऐसी भी कई घटनाएं आपके जीवन में आयीं। एक घटना बड़वानी की भी है, ध्यान में बैठे आचार्य शान्तिसागर जी पर कुछ लोगों ने मोटर चलानी चाही, पर मोटर ही बिगड़ गई। महाराज जी ध्यान में बैठे रहे। ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिनसे महाराज जी की दृढ़ता
कठोर तपस्या और समता के दिग्दर्शन होते हैं और अनायास ही आपके चरणों TE में श्रद्धा से मस्तक झुक जाता है।
मैं उनके चरणों में श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। टीकमगढ़ (म.प्र.)
पं. कमल कुमार शास्त्री प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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