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चारित्र के धनी
____ छाणी जैसे दूरदराज गॉव में उत्पन्न हुए आचार्य शान्तिसागर जी एक आत्मानुभूतिक महापुरुष थे, जिन्होंने पवित्र वीतराग मार्ग पर चलकर स्व-पर कल्याण किया और समाज को नया प्रतिबोध दिया। शिथिलाचार को दूर करने में उन्होंने जो नियम बनाये, वे आज भी मानदण्ड के रूप में स्वीकृत किये जा सकते हैं। उनके इस पुनीत स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन पर मैं अपनी श्रद्धाञ्जलि व्यक्त करती हूँ। नागपुर (महाराष्ट्र)
(डॉ.) श्रीमती पुष्पलता जैन
श्रद्धाञ्जलि भारतवर्ष एक अध्यात्म प्रधान देश रहा है, वैदिक संस्कृति में उपनिषदों के माध्यम से तथा जैन संस्कृति में तीर्थकरों व आचार्य कुन्दकुन्द जैसे महान् T
तपस्वी साहित्यकारों की लेखनी से जो अध्यात्म-रस की पावन गंगा वही, उसमें भारतीय जन मानस अवगाहन कर आज भी आत्मतृप्ति कर विशिष्ट सुख का अनुभव करता है। अध्यात्म जगत् के विशाल आकाश को निर्ग्रन्थ परम्परा के जिन अनेक उज्ज्वल नक्षत्रों ने प्रकाशित किया है, उनमें प्रशममूर्ति दिगम्बराचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का नाम विशिष्ट रूप से उल्लेखनीय है।
दो दशकों से भी अधिक समय तक, देश के विविध भागों में इनके पद-विहार से धार्मिक जागृति का अपूर्व उत्साहपूर्ण वातावरण बना, जिससे जैन अहिंसक संस्कृति के इतिहास का गगनमण्डल सुवासित हुआ है। ऐसे महान सन्त के उल्लेखनीय व्यक्तित्व व कृतित्व को यदि सर्वजन प्रकाश्य बनाने का प्रयास किया जाय तो यह एक महान उपकारी कार्य होगा। इन महान निर्ग्रन्थाचार्य भव्य जनकमल-दिनकर परम पूज्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) के पुनीत चरण कमलों में मेरा श्रद्धातिरेकपर्ण शत शत
नमोस्तु। 4614, चिराग, नई दिल्ली
दामोदर शास्त्री
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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