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युग के महान् सन्त
प्राचीन दिगम्बर जैनाचार्यों के जीवन का स्मरण निःसन्देह एक उत्तम कार्य है। उनकी पावन स्मति को चिरस्थायी बनाने के लिए स्मति ग्रन्थों का प्रकाशन आवश्यक है।
आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज अपने युग के महान सन्त थे। उनके पावन चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ।
बरकत नगर, जयपुर
श्रीमती तारा देवी कासलीवाल
श्रद्धासुमन
हर सुबह उषारानी बालिका सुनहरा घड़ा लेकर जल भरती और छलकाती है, उस समय रात भर जागने के बाद तारे अलसाये हुए और उनींदे हो जाते हैं। रात बीतने पर तारों के डूबने और सूर्योदय के संधिकाल के समय पूज्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज के चरणों में मैंने शीश झुकाया
जिस प्रकार सूर्य और रश्मियां, चन्द्रमा और चान्दनी, नदी और तरलता । अन्योन्याश्रित होते हैं, वैसे ही हमारी श्रद्धा पूज्य मुनिराज से कभी दूर नहीं हो सकती है।
आपके अहिंसा के उद्बोधन हृदय पट खोलने वाले हैं। इसलिये हृदय - में संतों के प्रति श्रद्धा पैदा करें। श्रद्धा एक तपश्चर्या है, एक साधना है, पा श्रद्धाग्नि से गुजर कर ही तो पाषाण शुद्ध होता है, पवित्र होता है। गुरु श्रद्धा L में डूबा हुआ ही मानव तो परमात्मा बनता है। ऐसे सदगुरूओं के प्रति हम 1.
हृदय से श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं, और अपना मन भी उनके चरणों में 1 समर्पित करते हैं। लक्ष्मीपुरा, सागर (म.प्र.)
कु. किरण माला शास्त्री 卐प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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